कभी कभी ऐसा भी होता है
हर ज़ख्म सि्सक रहा होता है
दवा भी मालूम होती है
मगर इलाज ही नही होता है
हर जख्म के साथ कोई याद होती है
एक दर्द होता है ,एक अहसास होता है
मगर फिर भी वो लाइलाज होता है
तन्हाइयाँ कहाँ तक ज़ख्मों का इलाज करें
इन्हें तो आदत पड़ गई है दर्द में जीने की
रोज ज़ख्मों को उधेड़ना और फिर सीना
नासूर बना देता है उन ज़ख्मों को
और नासूर कभी भरा नही करते
इनका इलाज कहीं हुआ नही करता
हर ज़ख्म सि्सक रहा होता है
दवा भी मालूम होती है
मगर इलाज ही नही होता है
हर जख्म के साथ कोई याद होती है
एक दर्द होता है ,एक अहसास होता है
मगर फिर भी वो लाइलाज होता है
तन्हाइयाँ कहाँ तक ज़ख्मों का इलाज करें
इन्हें तो आदत पड़ गई है दर्द में जीने की
रोज ज़ख्मों को उधेड़ना और फिर सीना
नासूर बना देता है उन ज़ख्मों को
और नासूर कभी भरा नही करते
इनका इलाज कहीं हुआ नही करता
8 टिप्पणियां:
रोज ज़ख्मों को उधेड़ना और फिर सीना
नासूर बना देता है उन ज़ख्मों को
और नासूर कभी भरा नही करते
इनका इलाज कहीं हुआ नही करता
बेहतरीन रचना
वाह जी वाह एक और नया बहुत अच्छी रचनाओं का सागर हमें मिल गया बहुत अच्छी रचनाएं हैं आपकी वंदना जी नाम के ही अनूरुप हो आप बधाई हो
तन पर लगे घाव इतने नही पीड़ादायी होते हैं।
मन के जख्म हमेशा,सबको दुखदायी होते हैं।
कल 01/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
सुंदर रचना ।
man ke jakham bahut hi gahre hote hai,,,,,,,
सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - ७ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद
बढ़िया रचना
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