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बुधवार, 7 जनवरी 2009

साया

मेरे साये ने कल मुझसे कहा
किसको खोजता फिरता है तू
इधर उधर
मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ कोई नही है तेरा
बाहर अपना कोई नही
जो तुझे समझ सके
फिर क्यूँ ढूंढता फिरता है
तू इन परायों में अपनों को
जब मैं तो तेरे साथ हूँ
यहाँ जीवन दो दिन का मेला है
कोई न किसी का साथी है
इस परायी बस्ती में
सिर्फ़ अपना ही मिलता नही
जो है तेरा अपना
उसको तू अपनाता नही
जो है तेरे साथ हर पल
उसको तू पहचानता नही
क्या कभी कोई अपने
साये से जुदा हो पाया है
फिर क्यूँ तू
अपने साये को पुकारता नही
यहाँ सब छोड़ जायेंगे
कोई न साथ निभाएगा
एक तेरा साया ही
सिर्फ़ तेरे साथ जाएगा
फिर क्यूँ किसी को खोजता है
मैं तो तेरे साथ हूँ

3 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

बहुत गहरी बात कह दी आपने। सच दिल को छू गई।
मेरे साये ने कल मुझसे कहा
किसको खोजता फिरता है तू
इधर उधर
सच पता नही किस की खोज में हम भाग रहे है। पर वो है अपने अंदर। मृगतृष्णा।

सुशील छौक्कर ने कहा…

आपकी पोस्ट ब्लोगवानी में नही देखती।

vijay kumar sappatti ने कहा…

kya baat hai ...
zindagi ki sacchai ..

saaaye hi to apne saath hoten hai ..