आज न जाने कहाँ
कौन सी गलियों में
किन यादों में
भटक रही हूँ मैं
पता नही कौन कौन से
मोड़ पर मुडती गई ज़िन्दगी
हर मोड़ पर एक याद मिली
अकेली,तनहा,खामोश
कोई साथी नही जिसका
उससे मिलना ,बातें करना
दिल को सुकून दे गया
आज न जाने क्यूँ
हर मोड़ ज़िन्दगी का
वापस बुला रहा है
यादों को फिर से
जगा रहा है
क्यूँ वो यादें
फिर से याद आ रही हैं
दिल को tadpa रही हैं
मुझे कुछ कह रही हैं
क्या .....यही समझना है
इसी भटकाव में
मैं भटकती जा रही हूँ
यादों को क्यूँ
इतना याद आ रही हूँ
किस तलाश में
वापस मुड रही हूँ
कौन से पन्ने को
खोलने की कोशिश में
हर पन्ना पलट रही हूँ
क्यूँ इन यादों के सफर पर
बढती जा रही हूँ
ये कौन से भटकाव में
भटकती जा रही हूँ
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखा है।
वाह वाह वाह। आदमी बना ही भटकने के लिए ही। कभी किसी चीज की तलाश, कभी किसी की तलाश।
एक टिप्पणी भेजें