वो कहीं नही हारा
हर पल जीतता रहा
आगे बढ़ता ही रहा
कोई राह,कोई डगर
उसका रास्ता न रोक सकी
हर कठिनाई से जूझता हुआ
ज़िन्दगी की हर कठिन
परीक्षा देता हुआ
हर पल सिर्फ़ आगे ही
आगे बढ़ता गया
अपने अनंत लक्ष्य की ओर
चलते चलते
सिर्फ़ एक ठोकर ने उसे
यथार्थ के धरातल par
ला खड़ा किया
जो कहीं नही हारा
जो कहीं नही झुका
वो आज लहूलुहान
हो गया
आज उसे जिसने मारा
वो उसके अपने थे
जिनके लिए वो
ता-उम्र जीता रहा
हर पल लड़ता रहा
आज उन्ही रिश्तों ने
उसे कितना बेबस कर दिया
जिन रिश्तों पर उसका
भरोसा टिका था
जिन रिश्तों के बिना
उसका अस्तित्व ही न था
आज उन्ही रिश्तों ने
उसे बेसहारा कर दिया
आज हर पल जितने वाला
वो इंसान
रिश्तों से हार गया
रिश्तों ने उसे तोड़
तोड़ दिया और
वो बिखर गया
9 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया कविता
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
वो इंसान
रिश्तों से हार गया
रिश्तों ने उसे तोड़
तोड़ दिया और
वो बिखर गया
BAhut sundar rachana....
रिश्तों से हार गया
रिश्तों ने उसे तोड़
तोड़ दिया और
वो बिखर गया
bahut sunder rachana
बहुत अच्छी रचना ।
अच्छा और सच कहा है आपने। रिश्तों के नीचे की जमीन खोखली होने लगी। जब ही ये टूटने लगे है। इनमें माया, मोह, चमक, दमक नाम के दीमक लग चुके है।
जिन रिश्तों पर उसका
भरोसा टिका था
जिन रिश्तों के बिना
उसका अस्तित्व ही न था
आज उन्ही रिश्तों ने
उसे बेसहारा कर दिया
रिश्ते बहुत धोखा देते हैं....सचमुच हरा देते हें किसी को भी।
बहुत सही!!
bahut badhiya kavita........
vandana ,
kitni gahri baat kah gayi ho aap...
जिन रिश्तों के बिना
उसका अस्तित्व ही न था
आज उन्ही रिश्तों ने
उसे बेसहारा कर दिया !!
saara jeevan , insaan , apne aas paas ke rishton ko nibhaane mein hi laga rahta hai , aur ant mein use ye gati milti hai ..
meri ye poem inhi rishto par likhi hai : " laash " padhiyenga jarur..
vijay
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