व्यथित हृदय से क्या निकलेगा
लावा बरसों से उबल रहा हो जहाँ
कभी तो फूटेगा , कभी तो बहेगा
इस आग के दरिया में
बर्बादी के सिवा क्या मिलेगा
पता नही अपने साथ
किस किस को बहा ले जाएगा
अब दर्द बहुत बढ़ने लगा
कब ये हृदय फटेगा
कब इसमें से दर्द की
किरच किरच निकलेगी
कब ये jwalamukhi
हर बाँध तोडेगा
और इस व्यथित हृदय को
कुछ पलों का सुकून मिलेगा
4 टिप्पणियां:
अच्छा लिखा हैं। पर....।
ये आस कभी खत्म न हो खुशी का एक कारण अपने मन को समझाना भी होता है.....
कभी तो फूटेगा कभी तो बहेगा,.....
बहुत ही अच्छा लिखा है........
गहरे भावः प्रकट किए हैं....
तो सुकून कैसे नही मिलेगा......
मिलेगा....
अक्षय-मन
बढ़िया है.
ultimate , dard ki param abhivyakhti ..
vijay
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