उसकी अंखियों से बरसती चाहत को
मैंने हर पल महसूस किया
फिर भी शब्दों के अभाव में
उसने न कभी इज़हार किया
मैं इंतज़ार करती रही उस पल का
जब चाहत को शब्द मिलेंगे
उस पल के इंतज़ार में
एक ज़माना बीत गया
अब उम्र के इस मोड़ पर
क्या तुम्हारी आंखों में
उसी चाहत की बानगी दिखेगी
अब किसका इंतज़ार है तुम्हें
इज़हार के पल कहीं बीत न जाएं
क्या अब तक शब्द जुटा नही पाये
या खामोश मोहब्बत का इज़हार
मेरी कब्र पर करना चाहते हो
देखो मुझे पता है तुम्हारी चाहत का
एक बार तो इज़हार करो
कहीं दम निकल न जाए
इसी इंतज़ार में
3 टिप्पणियां:
देखो मुझे पता है तुम्हारी चाहत का
एक बार तो इज़हार करो
कहीं दम निकल न जाए
इसी इंतज़ार में
kya kahun , aapne itna accha likha hai ki shabd hi nahi hai tareef ke liye ..
ijab chahat ko shabd mileng is master line ..
badhai
कहाँ से ले आती ये भाव। सच बहुत ही उम्दा लिखा हैं। वैसे अक्सर ऐसा होता है।
लम्हों को कब तक जोड़ोगे,
भावों को कब तक तोलोगे।
मधुरिम पल मत व्यर्थ गवाँओ,
अधरों से कब तक बोलोगे।
दिवा-स्वप्न से क्या पाओगे,
केवल मन को भरमाओगे।
कुसुमित फल बरबाद करो मत,
बीती बातें याद करो मत।।
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