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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
प्रेम की सर्पीली डगर
प्रेम के बंधन में बंधे कभी मोहन है , कभी श्यामा है प्रेम की सर्पीली डगर कौन समझा है , कौन जाना है प्रेम में प्रेमी का रुख कभी तोला है , कभी माशा है प्रेम के पलडों में तुले कभी मीरा है , कभी राधा है
वाह आज के दिन इससे पढना बहुत अच्छा लगा। प्रेम के पलडों में तुले कभी मीरा है , कभी राधा है सच इनके प्यार की गहराई को समझना हर किसी के वश के बात नही। और आज तो आपके ब्लोग कृष्ण चारों तरफ दोड् रहे है।
prem ka bandhan hi to sabse bada aur pyaara aur mulyawaan bandhan hai ... is choti si kavita me aapne to praan foonk diye hai ... aur sach me kisne samjha hai prem ko ......
21 टिप्पणियां:
such prem ki dagar sarpili hi hai. achhi kavita. vadhai.
प्रेम का डगर,
बहुत सुंदर,
प्रेम में प्रेमी का रुख
कभी तोला है , कभी माशा है
प्रेम को जानना वाकई आसान नही है
aisa yah prem kyon hai ........par ehsaas to ek se hi hai na
janmastmi par ye post bada mahatva rakhati hai.
बहुत-बहुत बधाई।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अत्यन्त सुंदर अभिव्यक्ति है!
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें!
दास,
सुरेन्द्र "मुल्हिद"
प्रेम के पलडों में तुले
कभी मीरा है , कभी राधा है ......बहुत सुन्दर बधाई कृष्ण जन्माष्टमी की
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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INDIAN DEITIES
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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INDIAN DEITIES
प्रेम इक अनबूझ पहेली है,वाकइ मै येह सर्पीली ड्गर है.
प्रेम इक अनबूझ पहेली है,वाकइ मै येह सर्पीली ड्गर है.
वाह आज के दिन इससे पढना बहुत अच्छा लगा।
प्रेम के पलडों में तुले
कभी मीरा है , कभी राधा है
सच इनके प्यार की गहराई को समझना हर किसी के वश के बात नही। और आज तो आपके ब्लोग कृष्ण चारों तरफ दोड् रहे है।
बहुत प्यारी रचना है
प्रेम की सर्पीली डगर
कौन समझा है , कौन जाना है ....
एक अच्छी नपी-तुली रचना ....
लेकिन बहुत गहरे और सात्विक विचार
लिए हुए ....भावनात्मक अभिव्यक्ति . . .
---मुफलिस---
Prem tatv ki sahi vyakhya ki aapne..Bahut sundar rachna...
वन्दना जी लाजवाब अभिव्यक्ति है
प्रेम के पलडों में तुले
कभी मीरा है , कभी राधा है
जन्माश्तमी की शुभकामनायें
bahut sundar!
behad khoobsurat bhaav
are vaah....chand pantiyon men kitti gahari baat kah dee aapne.... shubhanallaah....!1
जमाष्टमी पर बडी सुन्दर कविता लिखी आपने, पर वन्दना जी इसे थोडा और लम्बा करती तो कविता और भी सुन्दर हो जाती.
राकेश
prem ka bandhan hi to sabse bada aur pyaara aur mulyawaan bandhan hai ... is choti si kavita me aapne to praan foonk diye hai ... aur sach me kisne samjha hai prem ko ......
waah
badhai ho ji
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