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मंगलवार, 22 सितंबर 2009

हश्र यही होना है

ज़रा पूछ तो हाल
शाख पर लटके
उस सूखे हुए पत्ते का
ज़रा देख तो उस ओर
ज़िन्दगी के बसंत तो
उसने भी देखे थे
सावन की रिमझिम फुहारों में
वो भी तो भीगा था
मौसम का हर रंग
उस पर भी तो चढा था
ज़िन्दगी की रंगीनियों का आनंद
उसने भी तो लिया था
पर अब देख उसका हाल
कैसा अलग -थलग सा
पड़ गया है
ज़िन्दगी का हर गम
वो झेल चुका है
हर तूफ़ान से
वो लड़ चुका है
ज़रा देख
उसकी खामोशी
सब बयां कर देगी
नज़रे उसकी तुझे भी
घायल कर देंगी
सिर्फ़ एक झोंका उसे
शाख से तोड़ देगा
और ज़िन्दगी से
नाता तोड़ देगा
ज़रा देख उस ओर
हश्र तेरा भी इक दिन
यही होना है ..............

22 टिप्‍पणियां:

Mishra Pankaj ने कहा…

ज़िन्दगी के बसंत तो
उसने भी देखे थे
सावन की रिमझिम फुहारों में
वो भी तो भीगा था
सही लिखा है आपने

Unknown ने कहा…

"हश्र यही होना है........"
बहुत उम्दा रचना.........
अत्यन्त सुन्दर व साहित्यिक शब्दावली के साथ साथ जीवन की धडकनों को स्पर्श करती अभिनव कविता,,,,,,,,, आमतौर पर ऐसी कविताओं में भाव का अतिरेक हो जाता है लेकिन आपने बड़े संतुलन से निर्वाह किया

आपको बधाई !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

kya baat hai vandana ji....
bahut gehri baat kahi hai aapne...
bahut he achey...
likhti rahiyega....

पवन चंदन ने कहा…

हां सभी का यही हाल होना है
जीवन इसी को कहते हैं
कुछ पाना है कुछ खोना है
पत्‍ते सा टूट जायेगा हर कोई
और मिल जायेगा धूल में
रह जायेगी मात्र यादों में
उसकी दी हुई छांव

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जीवन के यथार्थ का बोध कराती शशक्त कविता...वाह...
नीरज

mehek ने कहा…

jeevan ke basant aur patjhad ko bayan karti sunder rachana,waah

निर्मला कपिला ने कहा…

सब का हश्र यही होना है फिर भी इन्सान कहाँ याद रखता है। बहुत सुन्दर कविता है बधाई

M VERMA ने कहा…

हश्र तेरा भी इक दिन
यही होना है ..............
सही कहा हश्र तो यही होना है
बहुत सुन्दर रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ज़िन्दगी के बसंत तो
उसने भी देखे थे
सावन की रिमझिम फुहारों में
वो भी तो भीगा था.....

PATTE KE MAADYAM SE LIKHI SACH KI KAHAANI HAI YE .... JEEVN KA BHI TO YAHI HASHR HONA HAI ... YATHAARTH RACHNA ...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

हश्र यही होना है,शशक्त कविता

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"सिर्फ़ एक झोंका उसे
शाख से तोड़ देगा
और ज़िन्दगी से
नाता तोड़ देगा
ज़रा देख उस ओर
हश्र तेरा भी इक दिन
यही होना है .............."

वाह.. वन्दना जी!
दार्शनिकता से परिपूर्ण इस रचना के लिए,
आपको बधाई !

सुशील छौक्कर ने कहा…

जिदंगी की गहरी सच्चाई को कितने सरल शब्दों में कह दिया। वाकई आपकी कलम कमाल का लिखने लगी है। बहुत ही उम्दा लेखन।

Arshia Ali ने कहा…

जीवन को बहुत करीब से दिखाती है यह रचना।
( Treasurer-S. T. )

Mithilesh dubey ने कहा…

भाई वाह क्या बात है, दिल को छु गयी आपकी ये रचना। बहुत-बहुत बधाई,,,,,,,,,,,..............

अमिताभ मीत ने कहा…

अच्छा है !!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

dil mein samahit hoti rachna

रंजना ने कहा…

चिरंतन सत्य की सुन्दर अभिव्यक्ति.....

यह एक सुन्दर कविता ही नहीं चिरंतन चिंतन भी है...

Bahut hi sundar...aabhar.

Udan Tashtari ने कहा…

यथार्थ दर्शाति...क्या बात है...गजब की रचना.

राकेश कुमार ने कहा…

सावन की फुहारो मे भीगती हुई, अपने शान, ऐश्वर्य और यौवन पर इठलाती पेड की हरी हरी पत्तियो को तब कहा अहसास होता है, जब वह मस्ती मे झूम रही होती है,पथिक उन पत्तियो की छाव की आस लिये विश्राम की लालसा रखता है पर वह इससे बेपरवाह मदमस्त अदाओ का स्वान्ग ओढे नाच गा रही होती है, वह जीवन की उस वास्तविकता को भूल जाती है कि एक दिन ऐसा आयेगा जब शाख से उसका विछोह होगा और वह अस्तित्वविहीन हो जायेगी, और तब शायद उसके पास पश्चाताप के अलावा कोई मार्ग नही होगा कि उसने किसी राही को क्षण भर का सुख भी कभी ना दे सकी.

ठीक इसी तरह कवियित्री ने प्रतीक के माध्यम से मानव जीवन की तुलना एक पत्ती से करते हुये पेड और उसकी शाख को इस धरती का रूप देने का प्रयत्न किया है, सचमुच इन्ही पत्तियो की तरह हम अपने यौवन को व्यर्थ कर रहे होते है, छोटी मोटी सहायता की आकन्क्षा लिये हर कोई हमारी देहरी से खाली हाथ लौट आता है और हम बस तमाम मूल्यो और अपनी गौरवशाली परम्परा को ताक पर रखकर मस्ती मे डूबे होते है. लेकिन जब उस टुटे पत्ती की तरह हमारा भी हश्र होता है तब हमारी मुट्ठी मे केवल शिफर होता है और कुछ भी नही.

pooja ने कहा…

bahut badiya...........

Murari Pareek ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर तरीके से हश्र बताया है !!

अपूर्व ने कहा…

सच है यह जीवन का..जितना पहले स्वीकार कर लें उतना बेहतर है