अँधा हूँ मगर
आँख वालों को
आईना बेचता हूँ
शायद अपना अक्स
नज़र आ जाये
किसी को
गूंगा हूँ मगर
जुबान वालों को
शब्द बेचता हूँ
शायद कोई जुबाँ
के ताले खोले
कोई तो सत्य
की चादर ओढ़े
बहरा हूँ मगर
कान वालों को
गीत सुनाता हूँ
शायद सुनकर
किसी का तो
खुदा जगे
कोई तो वक़्त की
आवाज़ सुने
19 टिप्पणियां:
आज तो बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र लगाए हैं!
सोचने को विवश करते हैं!
काश कि इनकी भाषा सब समझ सकें
अँधा हूँ मगर
आँख वालों को
आईना बेचता हूँ
शायद अपना अक्स
नज़र आ जाये
किसी को
वंदनाजी
सुंदर बाते शब्दों के माध्यम से आपने कही है. अच्छी रचना के लिए आभार!
आपका अपना
महावीर बी सेमलानी
अँधा हूँ मगर
आँख वालों को
आईना बेचता हूँ
शायद अपना अक्स
नज़र आ जाये
किसी को
बहुत सुन्दर, इस समाज को आईने की सख्त जरूरत है
बेहद सुन्दर व भावपूर्ण रचना लगी ........
waah......bahut hi badhiyaa, jagane ka mul mantra
waah kya baat hai vandna ji
dhimi he sahi par kraanti to laaaunga ,,,,
rookte hi sahi par lax to paaunga ,,,
vo laakh mukre apne vaado se ,,,
par mai har pal yaad dilaaunga ,,,
saadar
praveen pathik
9971969084
Kya baat hai....achhi rachna hai!
मैंने कल सही कहा था ना कि आप बहुत ही उम्दा लिखने लगी है। उसका एक उदाहरण इस रचना में मिल रहा है।
vandana ji,
is bar bhi aapne kamaal likha hai...
bahut he badhiya..
बहुत सुन्दर भाव.....सच कितने अंधे,गुने और बहरे हो गए हैं हम लोग....
विचारणीय रचना...बधाई
विचारोत्तेजक!
sach me ek aaina dikhati si hi kavita hai aaj to.. shreshth rachna
waah bahut khoob
viradhabhas ko bahut ache se pesh kiya hai!!
अँधा हूँ मगर
आँख वालों को
आईना बेचता हूँ
शायद अपना अक्स
नज़र आ जाये................very well thought
सच है इन्सान गूंगा, बहरा और अँधा ही तो बना हुआ है .....आईना दिखाती नज़्म ......!!
बहुत ही अच्छी नज़्म है...सच्चाई बयाँ करती हुई....आज इन्सान ना तो सच्चाई देखना चाहता है ,ना सुनना और ना ही बोलना...
सच्ची और अच्छी नज़्म...ढेरों बधाईयाँ..
नीरज
nice
बहुत ग़ज़ब की कोशिश है .... पर किसी के कान में जू नही रेंग़ेगी .... मोटी चॅम्डी के हैं सब ...
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