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बुधवार, 21 अप्रैल 2010

अधूरे ख्याल

यूँ ही
भटकते- भटकते
कभी- कभी
अधकचरे , अधपके
अधूरे ख्यालात
दस्तक देते हैं
और फिर ख्यालों
की भीड़ में
खो जाते हैं
और हम फिर
उन्हें ख्यालों में
ढूंढते हैं
मगर कभी
खोया हुआ
मिला है क्या
जो मिल पाता
ये अधूरे ख्याल
क्यूँ अंधेरों में
खो जाते हैं
क्यूँ इतना तडपाते हैं
क्यूँ अधूरे ख्याल
अधूरे ही रह जाते हैं
भावनाओं में
क्यूँ नही
पलते हैं
शब्दों में
क्यूँ नही बंधते हैं
क्यूँ अधूरेपन की
पीर सहते हैं
शायद कुछ ख्यालों की
किस्मत अधूरी होती है
या अधूरापन ही
उनकी फितरत होती है

27 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

अपूर्णता ही सम्पूर्णता का संबल बनती है -सुन्दर !

सीमा सचदेव ने कहा…

सही कहा आपने , न जाने कितने ही ख्याल पूरा होने से पहले ही दम तोड देते हैं

Unknown ने कहा…

वाह वाह क्‍या बात कही है ख्‍वाबों की किस्‍मत अधूरी होती है अरे जनाब आपकी सोच के तो हम कायल हो गए

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत सुन्दर वंदनाजी ! कुछ ख्यालों, ख़्वाबों, भावों, कल्पनाओं और रचनाओं के भाग्य में आधे रास्ते तक का सफर ही लिखा होता है ! मज़िल तक पहुँचना शायद उनकी नियति नहीं ! ऐसे सभी ख़ूबसूरत जज्बों को सलाम जिन्हें शब्द नहीं मिल सके ! सुन्दर रचना के लिये बधाई !
http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

क्यूँ अधूरे ख्याल
अधूरे ही रह जाते हैं
भावनाओं में
क्यूँ नही
पलते हैं
शब्दों में
क्यूँ नही बंधते हैं
क्यूँ अधूरेपन की
पीर सहते हैं

वन्दना जी!
आपने विल्कुल अनछुए विषय पर
मौलिक रचना प्रस्तुत की है!
इस भावपूर्ण अनूठी रचना के लिए बधाई!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

कविता बहुत सुन्दर है ... ये सच भी है की ज्यादातर ख्यालात अधूरे रह जाते हैं ! एक कवी/लेखक से बेहतर इस बात को कौन समझ पायेगा ?

rashmi ravija ने कहा…

क्यूँ इतना तडपाते हैं
क्यूँ अधूरे ख्याल
अधूरे ही रह जाते हैं
भावनाओं में
क्यूँ नही
पलते हैं
शब्दों में
क्यूँ नही बंधते हैं
ओह बड़ा सटीक सवाल कर दिया...यही तो मुश्किल है,..और इस मुश्किल को बड़ी अच्छी तरह परिभाषित करती है ये रचना

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

शायद कुछ ख्यालों की किस्मत अधूरी होती है..... सुन्दर !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बिलकुल सही लिखा आपने...अधकचरे, अधपके खयालाते ...ऐसी ही दस्तक देते हैं....और फिर यूँ ही भीड़ में खो जाते हैं.... भाप बन कर...और जब खोजते हैं तो मिलता ही नहीं....ख्याल अधूरे ही तह जाते हैं....भावनाएं बंध जातीं हैं....शब्द बंध जाते हैं.... और अधूरापन फिर वैसे ही रह जाता है...हमेशा के लिए....

बहुत अच्छी कविता... दिल को छू गई....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

adhurapan hi fitrat hoti hai....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

शायद कुछ ख्यालों की
किस्मत अधूरी होती है

शायद...आपने सच कहा है...हर ख्याल अपने मुकाम पर नहीं पहुँचता...शशक्त रचना
नीरज

M VERMA ने कहा…

ये अधूरे ख्याल
क्यूँ अंधेरों में
खो जाते हैं

शायद अन्धेरा ही इतना घना है
सुन्दर खयालो की रचना

मनोज कुमार ने कहा…

शायद कुछ ख्यालों की
किस्मत अधूरी होती है
या अधूरापन ही
उनकी फितरत होती है

रचना अच्छी लगी ।

बेनामी ने कहा…

bilkul hi sach kaha aapne..
ACHHI RACHNA....
yun hi likhte rahein...
regards..
http://i555.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब बंधा है आपने अधूरे ख्यालात के ख्यालों को....मन की इस उहापोह को सुन्दर शब्द दिए हैं...खूबसूरत रचना

Deepak Shukla ने कहा…

Hi..
Khawab adhure aksar rahte..
Sote jo dekhe jaate..
Jagte khawab jo dekhe koi..
Aksar pure ho jaate..
Jeevan ek adhuri gaatha..
Jahan purn hai wahan apurn..
Ant jahan hota hai aksar..
Log samajhte hai sampurn..

Sundar bhav..

DEEPAK..

Kulwant Happy ने कहा…

शायद कुछ खयालों की किस्मत अधूरी होती है।
नित्यानंद सेक्स स्केंडल के बहाने कुछ और बातें

kshama ने कहा…

Behad sundar! Wah!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अधूरेपन को तलाश करते करते जीवन बीत जाता है .... इस अधूरेपन की दास्तान अच्छी लगी ....

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 ने कहा…

क्यूँ नही
पलते हैं
शब्दों में
क्यूँ नही बंधते हैं
क्यूँ अधूरेपन की
पीर सहते हैं...सुन्दर भावपूर्ण रचना....

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi rachna.

अजय कुमार ने कहा…

अधूरे ख्याल और ख्वाब तो जिंदगी का हिस्सा हैं ।




नेट की समस्या थी इसलिये ब्लाग जगत से दूर था

अरुणेश मिश्र ने कहा…

उत्कृष्ट ।

राकेश कुमार ने कहा…

सचमुच कुछ खयालो की किस्मत मे ही पूर्णता नही लिखी होती लेकिन वे अधूरे खयाल हमे शायद यह अहसास दिलाते है कि इस सन्सार मे शायद कोई भी व्यक्ति , वस्तु, खयाल अथवा शब्द विस्तार पूर्ण नही होते, पूर्णता एक भ्रम है, महज एक दिवास्वप्न है, जो खयाल स्वयम मे पूर्णता का बोध पाते है, वह पूर्ण ना होकर सिर्फ पूर्णता का अहसास मात्र है, उसमे भी विस्तार और सन्शोधन की गुन्जाईश सर्वथा होती है. अत: हमारे लिये यही सोचना बेहतर है कि जिन खयालो को हम अधूरा समझते रहे उसने शायद किसी बिन्दू पडाव अथवा विराम पर ही पूर्णता का आभास पा लिया होगा.

सादर

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सवाल कई हैं ....पर जवाब नदारद ......!!

daanish ने कहा…

mn ke bhaav
shabdoN ki chhat`pataahat
aur
kaavya ka saundarya
sabhi kuchh prabhaavshali bn padaa hai... badhaaee .

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

ye rachna pasand aayi aapki ..kho jate hain mere bhi khayal aise hi kabhi kabhi ..par main ..unke peeche bhaagta nahi ..unhe poora hona hota hai ..aur wo pore hote hain ..kisi bhi khayal ki kismat adhuri nahi hoti.. han..uska poora hona aap jaisa chah rahe hon waisa ho yah zaroori nahi hai .. :) achhi nazm ..