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शुक्रवार, 20 अगस्त 2010
घायल यादें
बेल बूँटों सा टाँका था कभी यादों को दिल की उजली मखमली चादर पर बरसों बाद जो तह खोली तो वक्त की गर्द में दबे बेल बूँटे अपना रंग खो चुके थे सिर्फ बेरंग, मुड़ी - तुड़ी कटी- फटी सी यादें अपने घावों को सहलाती मिलीं
30 टिप्पणियां:
बेनामी
ने कहा…
बहुत खूब ....सुभानाल्लाह .....एक बात कहूँगा वंदना जी...आपका बात कहने का एक अलग अंदाज़ है, जैसे हेमंत कुमार छोटे-छोटे शब्दों में गाते थे...क्योंकि और गायकों की तरह वो लम्बी साँस में नहीं गा पाते थे ...पर उन्होंने अपनी कमी को ही अपनी खूबी बना लिया......इसी तरह आप भी छोटे-छोटे शब्दों के रूप में एक अलग अंदाज़ में लिखती हैं....जैसे नज़्म लिखी जाती है |
वंदना जी मैंने मुंशी प्रेमचंद जी को समर्पित एक नया ब्लॉग बनाया है , आपसे निवेदन है कृपया एक बार ज़रूर पधारे :-
http://qalamkasipahi.blogspot.com/
अगर ब्लॉग पसंद आये तो फॉलो करके उत्साह बढ़ाये.... धन्यवाद
30 टिप्पणियां:
बहुत खूब ....सुभानाल्लाह .....एक बात कहूँगा वंदना जी...आपका बात कहने का एक अलग अंदाज़ है, जैसे हेमंत कुमार छोटे-छोटे शब्दों में गाते थे...क्योंकि और गायकों की तरह वो लम्बी साँस में नहीं गा पाते थे ...पर उन्होंने अपनी कमी को ही अपनी खूबी बना लिया......इसी तरह आप भी छोटे-छोटे शब्दों के रूप में एक अलग अंदाज़ में लिखती हैं....जैसे नज़्म लिखी जाती है |
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http://qalamkasipahi.blogspot.com/
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jara ek sparsh do, haree-bharee ho jayengi....
मुड़ी - तुड़ी
कटी- फटी सी
यादें अपने
घावों को
सहलाती मिलीं
--
बहुत बढ़िया!
--
घायल यादें वास्तव में ऐसी ही होती है!
"सिर्फ बेरंग,
मुड़ी - तुड़ी
कटी- फटी सी
यादें अपने
घावों को
सहलाती मिलीं" बहुत सुन्दर भाव ! स्म्रितिया अक्सर बेरन्ग हो जाती है
बरसों बाद जो तह खोली तो वक्त की गर्द में दबे बेल बूटे अपना रंग खो चुके थे !
बहुत उम्दा भाव वंदना जी !
dil ko chhu gayi rachna
कभी
बेल बूँटों सा
टाँका था
यादों को
दिल की संदूक में रखी
उजली मखमली
चादर पर
बरसों
बाद संदूक
खोली
तो वक्त की
गर्द में दबी
बेरंग
होती चादर में
मुड़ी - तुड़ी
यादें अपने
घावों को
सहलाती मिलीं
ओह , बहुत मार्मिक चित्रण यादों का ....
सुन्दर रचना.....
बेल बूटों की तरह सहेजी यादों मे सिलवटें। बहुत सुन्दर कल्पना।
"अच्छी है" , "उम्दा भाव हैं " "गहरी बात कही"
सच में आपकी रचनाएँ तो दिल को छू लेती हैं...
सिर्फ बेरंग,
मुड़ी - तुड़ी
कटी- फटी सी
यादें अपने
घावों को
सहलाती मिलीं
oh! kitani gahari baat ...bahut acchi rachana!
बेहतरीन। लाजवाब।
*** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।
बेहतरीन। लाजवाब।
*** हिन्दी प्रेम एवं अनुराग की भाषा है।
सुंदर शीर्षक के साथ.... बहुत अच्छी व सुंदर कविता...
बेहतरीन कृति.. बहुत ही अच्छा लगा..
एक तो पुरानी और उसपे घायल ,क्या बात है
वंदना जी...
यादें मन की गर मुरझायीं...
लगती हैं की तुड़ी मुड़ी...
उनको मन के भावों से...
कर सकतीं फिर से हरी-भरी...
आपकी हर कविता पहले से ज्यादा उम्दा होती है,
सुन्दर कविता...
दीपक....
बेहद ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ!
"बेल बूटे" क्या होता है ?
कृपया इसका अर्थ बताएं तो मैं भी पूरा भाव समझ पाउँगा
vandana ji aaj aapki kafi rachnayen padhi aur unme khoti chali gayi ,bahut hi marmik prstuti hai jo har dil ko chhu jaye.........aabhar
@वन्दना जी
कृपया मुझे "बेल बूटों" का मतलब बताएं
मुझे सच में नहीं पता
bahut hi khubsurat rachna.....
umdaah prastuti...
mere blog par is baar..
पगली है बदली....
http://i555.blogspot.com/
क्या खूब कहा आपने... यादों की ऐसी नाजुक हालत देख कर दिल में टीस सी उठती है!
वन्दना दीदी नमस्कार! यादेँ धुंधली जरुर हो जाती हैँ, मगर अपने निशां कभी मिटने नहीँ देती। अति सुन्दर रचना, गहरे और गम्भीर भाव लिए हुए। आभार! -: VISIT MY BLOG :- तुम ऐसे मेँ क्यूँ रुठ जाती हो?............कविता को पढ़ने के लिए आप सादर आमन्त्रित हैँ।आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
exceelent
मैं यह जंजाल हमने भी महसूस किया।
kya kahun vandana ji ...
yaade dil me bas jaati hai aur unhi yaado ke sahaare zindagi ko kaatna padhta hai ...
shesh phir , abhi tabiyat bhi theek nahi hai ..
poori rachna ati sundar.........bhavpoorna kavita....
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