अंतर्मन के सागर की
अथाह गहराइयों में
उपजी पीड़ा का दर्द
छटपटाहट, बेबसी की
जंजीरों में जकड़ी
रिश्ते की डोर
ना जाने कितनी
बार टूटी
और टूटकर
बार- बार
जोड़नी पड़ी
इस आस पर
शायद मोहब्बत को
मुकाम मिल जाये
और हर बार
रिश्ते में एक
नयी गाँठ
लगती रही
हर गाँठ के साथ
डोर छोटी होती गयी
प्रेम की , विश्वास की
चाहत की डोर
तो ना जाने कहाँ
लुप्त हो गयी
अब तो सिर्फ
गाँठे ही गाँठे
नज़र आती हैं
डोर के आखिरी
सिरे पर भी
आखिरी गाँठ
अब कैसे नेह
के बँधन को
निभाए कोई
कब तक
स्वयं की
आहुति दे कोई
शायद अब
नया सिरा
खोजना होगा
रिश्ते की डोर
को मोड़ना होगा
गाँठों के फंद में
दबे अस्तित्व
को खोजना होगा
रिश्ते को पड़ाव
समझ जीना होगा
रिश्तों के मकडजाल
से उबरना होगा
खुद को एक
नया मुकाम
देना होगा
16 टिप्पणियां:
jindgi ki ek hakikat ye bhi hai aur ye trasdi abhi aurat aur sirph aurat hi jee rahi hai lekin parivar, bachchon aur ghar kee tootan se bachne ke liye vah in ganthon ko najarandaaj kar deti hai. lekin shesh kuchh bhi nahin rahata hai. bas vo gaanth lagi rishte ki dor jiska na koi or hai aur na chhhor.
गांठों के फंद में फसे अस्तिव को खोजना होगा .......क्या बात है बधाई
अंतर्मन के सागर की
अथाह गहराइयों में
उपजी पीड़ा का दर्द
छटपटाहट, बेबसी की
जंजीरों में जकड़ी
रिश्ते की डोर
ना जाने कितनी
बार टूटी
और टूटकर
बार- बार
जोड़नी पड़ी
--
इसी का नाम जीवन है!
--
डूबते-उतराते हर किसी को
अपनी नौका खेनी ही पड़ती है!
टूटते रिश्तों का दर्द ,अच्छी रचना ।
मुहब्बत के मुकाम पे सिर्फ गांठें... खुद को पहचान देते देते ज़िन्दगी इन गांठों में मकड़ी की तरह उलझ जाती है
bahut khub vandana ji...
achhi rachna ke liye badhai sweekar karein.....
बेबसी की जंजीरों में जकड़ी रिश्ते की डोर
ना जाने कितनी बार टूटी
और टूटकर बार- बार
जोड़नी पड़ी इस आस पर
शायद मोहब्बत को
मुकाम मिल जाये..
bahut lajawab..
बहुत अच्छी कविता।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
अब तो बस एक ही रास्ता है रिश्तों की इस डोर में गांठों को मोती मान लीजिए मोहब्बत के।
और हर बार
रिश्ते में एक
नयी गाँठ
लगती रही
हर गाँठ के साथ
डोर छोटी होती गयी
बहुत सुंदरता से मन की बात लिख दी है
अब तो सिर्फ
गाँठे ही गाँठे
नज़र आती हैं
बिलकुल सच कहा ..
गाँठों के फंद में
दबे अस्तित्व
को खोजना होगा
बस इसी प्रयास में तो बाकी की ज़िंदगी निकल जाती है ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
रिश्तो के संसार को समझना ही तो रिश्ता निबाहना है |
बहुत सुन्दर ता से मन के रिश्तो का अंतर्द्वंद बुनती कविता |
अपनी पहचान बना लेना, रिश्तों के मकड़जाल में। बहुत कठिन कार्य है।
सब कुछ समझना आसान होता है बस रिश्तों को छोड़ कर .... इन्हें संभालना आसान नही ....
बेहद उम्दा
Bahut sunder. Rishton kee asaliyat aur unse upja dard dono se nijat pane ko machal ti huee kawita.
Rishton ka dard aur unse mukt hone kee cha rakhti huee kawita. Bahut sunder.
शायद अब
नया सिरा
खोजना होगा
रिश्ते की डोर
को मोड़ना होगा
बिलकुल सही वर्णन किया है. इसे पढ़कर लग रहा है की यही तो मैं भी कहना चाह रही थी.
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