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गुरुवार, 11 नवंबर 2010

दुनिया का दस्तूर

दस्तूर तो दुनिया 
सही निभाती है 
कमी हम में ही है
जो ना समझ पाते हैं 
सब अपने आप के साथी हैं 
पल भर के मुसाफिर 
मिलते हैं फिर
अपनी राह को 
बढ़ जाते हैं
कौन किसी का 
मीत यहाँ 
कौन किसी का 
साथी रे 
कुछ पल के लगे
डेरे हैं 
फिर बंजारों की टोली
चली जाती है
यहाँ ना कोई 
किसी का दोस्त है
सब राह भर के
साथी हैं
दुनिया जानती है
इस दस्तूर को
तू भी सीख जायेगा
रे मनवा 
यहाँ रिश्ते उधार 
के जुड़ते हैं
जीते जी ना 
चुकते हैं
मिलने बिछड़ने का
सिलसिला अनवरत 
चलता रहता है
मगर कोई ना 
किसी का होता है
इस दस्तूर की
घुट्टी बनाकर
पी जा प्यारे 
दिल को पत्थर 
बनाकर जीना 
सीख जा प्यारे
दुनिया का दस्तूर
निभाना आ जायेगा 
शायद तू भी तभी 
"इंसान" कहा जाएगा

33 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

कौन किसी का
मीत यहाँ

खुद को खुद का मीत बना लो
श्वासों को तुम संगीत बना लो

सुन्दर रचना

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....

Deepak Saini ने कहा…

मिलने बिछड़ने का
सिलसिला अनवरत
चलता रहता है

बहुत अच्छी कविता है
वाकई यही दस्तूर है दुनिया का
लेकिन प्रेम करना भी तो दुनिया का ही दस्तूर है

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

"duniya ka dastoor nibhaana aa jayega...shayad too bhi tabhi insaan kaha jayega"
sach hi to hai!

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ वन्दना जी
बहुत तराशी हुई रचना है,........आनंद आगया

संजय भास्‍कर ने कहा…

इस दस्तूर की
घुट्टी बनाकर
पी जा प्यारे
दिल को पत्थर
बनाकर जीना
सीख जा प्यारे
दुनिया का दस्तूर
निभाना आ जायेगा
शायद तू भी तभी
"इंसान" कहा जाएगा

बहुत खूब......बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

"दस्तूर तो दुनिया
सही निभाती है
कमी हम में ही है
जो ना समझ पाते हैं
सब अपने आप के साथी हैं
पल भर के मुसाफिर
मिलते हैं फिर
अपनी राह को
बढ़ जाते हैं"... कमोबेश यही स्थिति रहती है जो आदमी को इंसान बनने से रोकती है.. सुन्दर कविता..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

dastur ki ghutti.... per kitni kadwi, kitni alag - samajh me aaye tab to ......
per haan bina samjhe pi jana to shayad kuch ho ,
bahut badhiyaa

संगीता पुरी ने कहा…

बहंत सटीक ...

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

सटीक कविता
शायद तू भी तभी
"इंसान" कहा जाएगा
मिसफ़िट पर ताज़ातरीन

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कौन किसी का
मीत यहाँ
कौन किसी का
साथी रे
कुछ पल के लगे
डेरे हैं
फिर बंजारों की टोली
चली जाती है

बिलकुल सही कहा है ....सब एक भुलावे में जीते हैं ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सीख जा प्यारे
दुनिया का दस्तूर
निभाना आ जायेगा
शायद तू भी तभी
"इंसान" कहा जाएगा
--
सही शिक्षा और प्रेरणा देती सुन्दर रचना!

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

बहुत खूबसूरती से सच ब्यान कर दिया है, शब्दोँ का ताल-मेल बहुत अच्छा हैँ तथा शानदार प्रस्तुति के लिए आभार।

Shah Nawaz ने कहा…

शायद तू तभी
"इंसान" कहा जाएगा...

बहुत ही बेहतरीन, बहुत खूब!


प्रेमरस.कॉम

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सरल शब्दों में एक सच्ची बात कही है आप ने.कविता के भाव से मैं पूरी तरह सहमत हूँ

".....यहाँ रिश्ते उधार
के जुड़ते हैं
जीते जी ना
चुकते हैं......"

यही तो सच्चाई है !

बेनामी ने कहा…

वन्दना जी,

वाह...बहुत सुन्दर....जीवन का यतार्थ उतार दिया है आपने अपनी इस रचना में....सच है कौन कब किसके साथ रहा है ...जब तक तुम स्वयं के साथ ही नहीं हो सके ....बहुत सुन्दर......शुभकामनाये|

शिक्षामित्र ने कहा…

तभी ज्ञानियों ने इस जगत को निस्सार कहा!

ZEAL ने कहा…

.

दिल को पत्थर बनाकर जीना सीख ले प्यारे.... सबसे अहम् बात लिख दी आपने वंदना जी। बेहद सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार।

.

Dorothy ने कहा…

सरल सहज शब्दों में गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

केवल राम ने कहा…

पल भर के मुसाफिर
मिलते हैं फिर
अपनी राह को
बिलकुल सही ..पर फिर भी बोझ हम उठाए चलते हैं ..काश हम समझ पाते दुनिया के दस्तूर को ..और बन पाते इंसान ..शुभकामनायें

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सही कहा ....सुंदर कविता के लिए बधाई

amar jeet ने कहा…

सुंदर रचना

Manas Khatri ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना..शुभकामनाएं..!!
"खुद को खुद का मीत बना लो
श्वासों को तुम संगीत बना लो"...***श्रेष्ठ पंक्तियाँ.

Manas Khatri ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना..शुभकामनाएं..!!
"खुद को खुद का मीत बना लो
श्वासों को तुम संगीत बना लो"...***श्रेष्ठ पंक्तियाँ.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये जिये।

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

यहाँ रिश्ते उधार के जुड़ते है , जीतेजी न चुकते है. बहुत सही कहा आपने. सुन्दर रचना!

रानीविशाल ने कहा…

सरल शब्दों में कितनी बड़ी बात कही आपने ....बहुत प्रेरणादायक प्रस्तुति है

kishan dwivedi ने कहा…

kya khub likha hai vandna ji...duniya ka dastoor nibhaana aa jayega...shayad too bhi tabhi insaan kaha jayega"

kishan dwivedi ने कहा…

kya khub likha hai vandna ji....duniya ka dastoor nibhaana aa jayega...shayad too bhi tabhi insaan kaha jayega"

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इस जीवन का दस्तूर तो निरंतर चलता रहता है .... हर किसी का वक़्त भी निकल ही जाता है ... अच्छी रचना है ..

mehzabin ने कहा…

मिलने बिछड़ने का
सिलसिला अनवरत
चलता रहता है
बिलकुल सही कहा है
सुन्दर रचना

vijay kumar sappatti ने कहा…

bahut hi sunhdar likha hai , bilkul sacchi baat hai ..

badhayi

Unknown ने कहा…

वंदना जी ,,,

आपकी कविता पहली बार पढ़ी है... बहुत ही अच्छी लगी...
दुनिया के दस्तूर रुपी कपडे में भिगो-भिगो कर इंसानियत के भद्दे स्वरुप को जो आपने चपतें लगायी हैं , इसे वह आपने आप में एक अच्छी व्यंग कविता बना देता है...
_____जोगेन्द्र सिंह...
(मेरी लेखनी.. मेरे विचार..)