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सोमवार, 6 दिसंबर 2010

अनुपम उपहार हो तुम

नव कोपल
से नर्म एहसास सी
तुम
प्रकृति की सबसे अनुपम
उपहार हो मेरे लिए


वो ऊषा की पहली किरण सा
मखमली अहसास हो तुम
 

जाने कौन देस से आयीं
मेरे जीवन प्राण हो तुम


ओस की
पारदर्शी बूंद सी
तुम श्रृंगार हो
प्रकृति की
मगर मेरे मन के
सूने
आंगन की
इकलौती आस हो तुम

गुनगुनी धूप के
रेशमी तागों की
फिसलती धुन पर
थिरकता
परवाज़ हो तुम
पर मेरे लिए
ज़िन्दगी का
सुरमई साज़  हो तुम
 


38 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

प्रेम को कल्पना की जिस ऊंचाई पर ले जाती हैं वंदनाजी वह अचंभित कर देती है.. वर्तमान कविता में प्रकृति के तत्वों और परकृति के तत्वों को लेकर एक सम्पूर्ण प्रेम कविता रची गई है.. प्रभात के किरणों से लेकर गुनगुनी धूप से रची गई कविता कोमल एहसास दे रही है..

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर अहसास!

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

अति सुन्दर अभिव्यक्ति...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

रेशमी तागों की
फिसलती धुन पर
थिरकता
परवाज़ हो तुम
पर मेरे लिए
ज़िन्दगी का
सुरमई साज़ हो तुम
---
रचना में प्रकृति चित्रण के साथ पावन आकांक्षा भी निहित है!
बढ़िया लेखन, सुन्दर रचना!

Arvind Jangid ने कहा…

क्या चित्रण किया आपने ! लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार.

बेनामी ने कहा…

खुदा से जो मांगी है तुम्हें देखने के लिए
वो आखिरी साँस हो तुम...

बहुत ही सुन्दर कविता वंदना जी ...अपने अनुपम उपहार के लिए आपकी कविता भी किसी उपहार से कम नहीं....
अच्छा ये चिट्ठाजगत की बस खराब है क्या ???
मेरे ब्लॉग पर..
हिंदी साहित्य के एक महान कवि ...

संजय भास्‍कर ने कहा…

सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

अनुपमा पाठक ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्दचित्र!!!

anita saxena ने कहा…

गुन-गुनी धूप के रेशमी तागों की फिसलती धुन...... वाह क्या बात है , बहुत प्यारी रचना !

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

रेशमी तागों पे थिरकती परवाज़ हो तुम्।

अच्छी अभिव्यक्ति।

मनोज कुमार ने कहा…

मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये कविता हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट का अहसास कराती है।

JAGDISH BALI ने कहा…

एक कोमल अहसास ! कफ़ी दिनों से मेरे ब्लोग पर आप ने दस्तक नहीं दी ! इस छोटे से ब्लोगर का होंसला बढ़ाएं ! फ़ोलो करें !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहद खूबसूरत।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

तुम केवल तुम हो।

monali ने कहा…

Mujhe ye kavita meri pyari si bhatiji ki yaad dila deti h.. koi taar nahi judta magar fir bhi jitni baar padha uski shaitaaniyaan nazro k samne ghumti rahi :)

हरीश प्रकाश गुप्त ने कहा…

अनुभूति आकर्षक है। बधाई

हरीश प्रकाश गुप्त ने कहा…

अनुभूति आकर्षक है। बधाई।

हरीश प्रकाश गुप्त ने कहा…

अनुभूति आकर्षक है। बधाई।

बेनामी ने कहा…

awwww....kinni pyaari nazm hai, bohot sundar, sardi ki dhoop jaisi, lovely

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

ओस की पारदर्शी बूंद सी तुम श्रिंगार हो।

दिल की गहराइयों से कही अभिव्यक्ति।

ashish ने कहा…

सुकोमल अहसास वाली कविता . आभार .

Asha Lata Saxena ने कहा…

"वो उषा कई पहली किरण सा ,
मखमली अहसास हो तुम "
बहुत भावभीनी पंक्तियाँ |
बधाई
आशा

Dr Varsha Singh ने कहा…

सुंदर रचना के लिए साधुवाद!

M VERMA ने कहा…

अहसास की अत्यंत सुन्दर रचना

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

PREMYUT VEDNA ME DOOBI KALAM HI AISI RACHNA DE PATI HAI.
BHAV KI GAHRAI...KYA KAHNA!

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, ऐसी सुंदर रचना के लिए बधाई !

Kailash Sharma ने कहा…

प्रेम के कोमल अहसासों से पूर्ण बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत सुंदर कविता, बहुत ही भावपूर्ण ........

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सुकोमल भावों और सुंदर शब्दों से सजी एक उत्तम रचना। कविता में दिल को स्पर्श करने की क्षमता है।...बधाई, वंदना जी।

Shikha Kaushik ने कहा…

bhavbhasundar rachna .

Shikha Kaushik ने कहा…

bhavbhasundar rachna .

बेनामी ने कहा…

वंदना जी,

वाह बहुत नाज़ुकी से आपने अहसासों को लफ्जों में पिरोया है .....बहुत खूब....

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

वंदना जी,
आपकी अभिव्यक्ति किसी बच्चे की मुस्कान की तरह निर्मल ,भोली भाली और कोमल है !
भावों का गहरा सागर आपकी कविता में हिलोरे लेता हुआ साफ़ साफ़ परिलक्षित हो रहा है !
इतनी अच्छी रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Rajiv ने कहा…

"पर मेरे लिए
जिंदगी का सुरमई ताज हो तुन."
वंदना जी,नमस्कार.
आपकी यह रचना हमें अनायास ही wordsworh और Keats की रोमांटिक कविताओं के संसार में ले जाती है.इस तरह के खूबसूरत बिम्बों की वहां बहुतायत थी. मन को भाती रचना. आपके ब्लॉग पर देरी से आने का अफ़सोसहै.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

मगर मेरे मन के
सूने
आंगन की
इकलौती आस हो तुम
गुनगुनी धूप के
रेशमी तागों की
फिसलती धुन पर
थिरकता
परवाज़ हो तुम

bahut sundar!

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

वैसे नया प्रोफाइल चित्र बहुत अच्छा है.

राजेश उत्‍साही ने कहा…

लगता है आपकी नई फोटो के बारे में कही गई कविता है।

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत अच्छे शब्दों में लिखी गयी बहुत ही नरम मखमल सी कविता ... पढते पढते ही दिल को शान्ति मिल गयी ..

जय हो जी आपकी

विजय