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गुरुवार, 20 जनवरी 2011

अब सरसों खेतों में कहाँ उगती है

अब सरसों खेतों में कहाँ उगती है 
यादों के लकवे पहले ही उजाड़ देते हैं


अब भंवर नदिया में  कहाँ पड़ते हैं
अब तो पक्के घड़े भी डुबा देते हैं 


अब खुशबू मुट्ठी में कहाँ कैद होती है
इंसानी सीरत सी बाजारों में बिक जाती है 


अब रागों की बंदिशें कहाँ सजती हैं 
अब तो साज़ ही आवाज़ बदल देते हैं 


अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं  

अब वादियों में फूल कहाँ खिलते हैं
हर तरफ लहू के दरिया ही नज़र आते हैं  

34 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

ab ragon ki bandishen kahan sajti hain
ab to saaj hi aawaj dete hain.
bahut khoob!
har 'do lina' swayam abhivyakt ho rahi hai .

Aseem Trivedi ने कहा…

अच्छे मुक्तक है वंदना जी, मुझे सबसे अच्छा लगा.. अब खुशबू..........!

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है इस अभिव्‍यक्ति में ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

एक पंक्ति सच को अपने में समेटे हुए है.

सादर

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति ,सुन्दर शब्द सामंजस्य.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

yaadon ke lakwe ... sach , kis kadar apahij si hoti hain ye yaaden , maut ki tarah thahar jati hain , waqt bhi aage nahin jata ...



अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
waah

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

वंदना जी, आपके मुक्‍तकों ने मोह लिया। हार्दिक बधाई।

---------
ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

Anamikaghatak ने कहा…

bahut sundar

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आज के समय को अपने तरह से व्यक्त करती हुई गज़ल्नुमा कविता.. सुन्दर..

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dil ko chhune wali panktiyan........:)

बेनामी ने कहा…

अब रागों की बंदिशें कहाँ सजती हैं
अब तो साज़ ही आवाज़ बदल देते हैं

अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
--
वाह...!
बहुत ही विश्लेषण वाली पोस्ट लगाई है आज तो।
हरेक अन्तरे में सच्चे मोती टाँक दिये हैं।।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अब वादियों में फूल कहाँ खिलते हैं
हर तरफ लहू के दरिया ही नज़र आते हैं

संवेदनशील अभिव्यक्ति

rashmi ravija ने कहा…

आशा के विपरीत कुछ उदास सी कविता लगी...

पर मन का यह भी एक रंग होता है...जिसे सुन्दरता से शब्दों में ढाला है

vijay kumar sappatti ने कहा…

अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं

abhi to kerala se itna hi ,baaki bad me ..

vijay kumar sappatti ने कहा…

अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं

abhi to kerala se itna hi ,baaki bad me ..

deepti sharma ने कहा…

khubrurat rachna
..
mere blog par
"jharna"

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

khoobsoorat abhivyakti vandana ji

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ वंदना जी ! आपने अच्छा लिखा है .
लेकिन हमारे खेत में सरसों आज भी उगती है .
मैं आप को जल्दी ही सरसों का फोटो भेंट करूँगा .
आपका ब्लाग मैंने अप्पने संकलक प्यारी मां में जोड़ लिया है .
कृपया आयें और सबको साथ लायें.
http://hamarivani.com/myprofile.php?action=success

ZEAL ने कहा…

अब तो साज़ ही आवाज़ बदल देते हैं....
एक से बढ़कर एक !...अद्भुत !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हम सबके लिये।

Rakesh Kumar ने कहा…

aapke hirdey se nikli yeh kavita,lagti hai mano behti hui gambheer si ek sarita. jisne man ko nahalaya hi nahi per sahalaya aur gudgudaya bhi aur budhi ko sochne ko majboor kiya.

rakesh kumar ने कहा…

aapke hirdey se nikli yeh kavita,lagti hai mano behti hui ek gambhir si sarita.jisne man ko nahalaya bhi aur buddhi ko sochne ko majboor kar diya.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर लगी आप की रचना धन्यवाद

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

अब खुशबू मुट्ठी में कहाँ कैद होती है
इंसानी सीरत सी बाजारों में बिक जाती है

Bilkul sachvhi baat !

pragya ने कहा…

ख़ूबसूरत पंक्तियों में लिपटा एक कड़वा सच...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं ...

सच कहा है अब ये सब नहीं होता ... इंसान आधुनिक जो हो गया है .. मशीनी मानव हो गया है ... समय के बदलाव को बाखूबी लिखा है ...

amrendra "amar" ने कहा…

Bahut hi sunder rachna ......waah

अजय कुमार ने कहा…

पर अब अच्छी रचनायें जरूर मिलती हैं , जैसे आपकी ये रचना

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

aapka dard mere dil tak pahunchta hai... achcha likhti hain... padne ke baad bahut der tak aapke baare mein sochti rehti hoon... kash sarson phir se uge!

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

जब भी सरसों के खूबसूरत फूलों पर, उसकी लहलहाती फ़सल पर नज़र पड़ती थी तो दिल चाहता था कि वंदना गुप्ता जी को यह हरा-पीला मंज़र दिखा दें लेकिन उस मंज़र को क़ैद कैमरे में कौन करे ?
आज इत्तेफ़ाक़ से हम भी थे, सरसों के फूल भी थे और मंज़र क़ैद करने वाला भी आ पहुंचा।
http://mankiduniya.blogspot.com/2011/01/gift.html

Mithilesh dubey ने कहा…

बढिया प्रस्तुति के लिए आभार ।

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

बेहद खूबसूरत प्रस्तुति .....

Santosh Pidhauli ने कहा…

वाह ...
बहुत सुन्दर कविता
मन को भावुक कर दिया

आभार / शुभ कामनाएं