अब सरसों खेतों में कहाँ उगती है
यादों के लकवे पहले ही उजाड़ देते हैं
अब भंवर नदिया में कहाँ पड़ते हैं
अब तो पक्के घड़े भी डुबा देते हैं
अब खुशबू मुट्ठी में कहाँ कैद होती है
इंसानी सीरत सी बाजारों में बिक जाती है
अब रागों की बंदिशें कहाँ सजती हैं
अब तो साज़ ही आवाज़ बदल देते हैं
अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
अब वादियों में फूल कहाँ खिलते हैं
हर तरफ लहू के दरिया ही नज़र आते हैं
34 टिप्पणियां:
ab ragon ki bandishen kahan sajti hain
ab to saaj hi aawaj dete hain.
bahut khoob!
har 'do lina' swayam abhivyakt ho rahi hai .
अच्छे मुक्तक है वंदना जी, मुझे सबसे अच्छा लगा.. अब खुशबू..........!
बहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इस अभिव्यक्ति में ।
एक पंक्ति सच को अपने में समेटे हुए है.
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति ,सुन्दर शब्द सामंजस्य.
yaadon ke lakwe ... sach , kis kadar apahij si hoti hain ye yaaden , maut ki tarah thahar jati hain , waqt bhi aage nahin jata ...
अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
waah
वंदना जी, आपके मुक्तकों ने मोह लिया। हार्दिक बधाई।
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ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
bahut sundar
आज के समय को अपने तरह से व्यक्त करती हुई गज़ल्नुमा कविता.. सुन्दर..
dil ko chhune wali panktiyan........:)
अब रागों की बंदिशें कहाँ सजती हैं
अब तो साज़ ही आवाज़ बदल देते हैं
अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
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वाह...!
बहुत ही विश्लेषण वाली पोस्ट लगाई है आज तो।
हरेक अन्तरे में सच्चे मोती टाँक दिये हैं।।
अब वादियों में फूल कहाँ खिलते हैं
हर तरफ लहू के दरिया ही नज़र आते हैं
संवेदनशील अभिव्यक्ति
आशा के विपरीत कुछ उदास सी कविता लगी...
पर मन का यह भी एक रंग होता है...जिसे सुन्दरता से शब्दों में ढाला है
अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
abhi to kerala se itna hi ,baaki bad me ..
अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं
abhi to kerala se itna hi ,baaki bad me ..
khubrurat rachna
..
mere blog par
"jharna"
khoobsoorat abhivyakti vandana ji
@ वंदना जी ! आपने अच्छा लिखा है .
लेकिन हमारे खेत में सरसों आज भी उगती है .
मैं आप को जल्दी ही सरसों का फोटो भेंट करूँगा .
आपका ब्लाग मैंने अप्पने संकलक प्यारी मां में जोड़ लिया है .
कृपया आयें और सबको साथ लायें.
http://hamarivani.com/myprofile.php?action=success
अब तो साज़ ही आवाज़ बदल देते हैं....
एक से बढ़कर एक !...अद्भुत !
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हम सबके लिये।
aapke hirdey se nikli yeh kavita,lagti hai mano behti hui gambheer si ek sarita. jisne man ko nahalaya hi nahi per sahalaya aur gudgudaya bhi aur budhi ko sochne ko majboor kiya.
aapke hirdey se nikli yeh kavita,lagti hai mano behti hui ek gambhir si sarita.jisne man ko nahalaya bhi aur buddhi ko sochne ko majboor kar diya.
बहुत सुंदर लगी आप की रचना धन्यवाद
बहुत अच्छी कविता।
अब खुशबू मुट्ठी में कहाँ कैद होती है
इंसानी सीरत सी बाजारों में बिक जाती है
Bilkul sachvhi baat !
ख़ूबसूरत पंक्तियों में लिपटा एक कड़वा सच...
अब ख्वाब आँखों में कहाँ सजते हैं
ख्वाब से पहले इन्सान ही बदल जाते हैं ...
सच कहा है अब ये सब नहीं होता ... इंसान आधुनिक जो हो गया है .. मशीनी मानव हो गया है ... समय के बदलाव को बाखूबी लिखा है ...
Bahut hi sunder rachna ......waah
पर अब अच्छी रचनायें जरूर मिलती हैं , जैसे आपकी ये रचना
aapka dard mere dil tak pahunchta hai... achcha likhti hain... padne ke baad bahut der tak aapke baare mein sochti rehti hoon... kash sarson phir se uge!
जब भी सरसों के खूबसूरत फूलों पर, उसकी लहलहाती फ़सल पर नज़र पड़ती थी तो दिल चाहता था कि वंदना गुप्ता जी को यह हरा-पीला मंज़र दिखा दें लेकिन उस मंज़र को क़ैद कैमरे में कौन करे ?
आज इत्तेफ़ाक़ से हम भी थे, सरसों के फूल भी थे और मंज़र क़ैद करने वाला भी आ पहुंचा।
http://mankiduniya.blogspot.com/2011/01/gift.html
बढिया प्रस्तुति के लिए आभार ।
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति .....
वाह ...
बहुत सुन्दर कविता
मन को भावुक कर दिया
आभार / शुभ कामनाएं
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