कभी देखा है
कहीं भी
भोर को ठिठकते हुये
या सांझ को रुकते हुये
अनवरत चलते रहना
बिना विश्राम किये
सफ़र तय करना
आसान नही होता
एक तय समय सीमा मे बंधना
जीवन चक्र को
निरन्तरता प्रदान करना
आसान नही होता
हर चाहत को
निशा की स्याह चादर मे
दफ़न करना
और फिर भोर मे
अपने अश्रु कणों को
ओस मे परिवर्तित देखना
आसान नही होता
यूं ही दिनो को महीनो मे
महीनो को सालो मे
और सालो को युगो मे
बदलते देखना
मगर अंतहीन सफ़र
तय करते जाना
आसान नही होता
नही पता क्या
एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं
सिर्फ़ मरुस्थल की
मृगमरिचिका होती है
कहीं भी
भोर को ठिठकते हुये
या सांझ को रुकते हुये
अनवरत चलते रहना
बिना विश्राम किये
सफ़र तय करना
आसान नही होता
एक तय समय सीमा मे बंधना
जीवन चक्र को
निरन्तरता प्रदान करना
आसान नही होता
हर चाहत को
निशा की स्याह चादर मे
दफ़न करना
और फिर भोर मे
अपने अश्रु कणों को
ओस मे परिवर्तित देखना
आसान नही होता
यूं ही दिनो को महीनो मे
महीनो को सालो मे
और सालो को युगो मे
बदलते देखना
मगर अंतहीन सफ़र
तय करते जाना
आसान नही होता
नही पता क्या
एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं
सिर्फ़ मरुस्थल की
मृगमरिचिका होती है
30 टिप्पणियां:
बहुत ही अच्छा लिखा है ... ।
हर चाहत को
निशा की स्याह चादर मे
दफ़न करना
और फिर भोर मे
अपने अश्रु कणों को
ओस मे परिवर्तित देखना
बहुत गहन बात ... जीवन चक्र तो यूँ ही चलता है ..आसान तो कुछ भी नहीं ..
कविता के निराशावाद में भी आशा की किरण दिखाई दी...प्रकृति युगों युगों तक यूँही नियम से अपने काम करती आ रही है..फिर मैं क्यों न उसके कदमों पर चलने की कोशिश करूँ....चाहे जीवन लक्ष्यहीन सा ही हो फिर भी जब तक साँस चले तब तक जीवन गतिशील रहे...
कभी देखा है
कहीं भी
भोर को ठिठकते हुये
या सांझ को रुकते हुये...ek thithki si bhor mere aage aaker ruk gai...tareef karun yaa mahsoos karun , aatmchintan karun !
एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं|
बहुत ही सुन्दर और सार्थक बात
बहुत ही गहराई के साथ शब्दों को उतारा है आपने अपनी इस रचना में बहुत ही गहनता के साथ लिखा.
अक्षय-मन
जीवन के चक्र को समझाती कविता अच्छी बन पड़ी है. वाकई कुछ बातों को भुलाना आसान नहीं होता है.
मर्म छूती हुयी कविता।
आसान नही था इतनी गहरे भावो से सजी रचना लिखना.. पर आपने लिखा है... आपका आभार...
bhaut hi sundar rachna....
चरैवेति का सन्देश देती हुई सुन्दर रचना!
Safar bhavon ka, rahon ka, vicharon ka dimag se hee hota hai shuru aur badhta hai aage hi aage.
हमें प्रक्रुति के उपादानों से अनवरत सीख लेनी चाहिए।
भावनाओं से ओतप्रोत रचना.शब्दों का चयन बेहतरीन बधाई
जीवन चक्र की सार्थक/सफल व्याख्या आपकी कविता में देखने को मिली.
यूँ ही महीनो को.......वाह वंदना जी........बहुत गहरी बात कही है आपने......बहुत सुन्दर|
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
जीवन के चक्र को समझाती अच्छी कविता ....!!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक बात
चरैवति..चरैवति...चरैवति..
भावनाओ की सुन्दर अभिव्यक्ति...
Lovely expression !
jeewan chakra ki nirantarta pe aapn lagatar sthir man se nirantarta se likha hai..sadhi hui, bandhi hui..shandar kriti..aapka nirantar protsahan mujhe milta rahta hai..is ke liye bhi hardik dhnywad
बेहतरीन।
सादर
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
बहुत ही सुंदर ...
एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं
सिर्फ़ मरुस्थल की
मृगमरिचिका होती है
बिलकुल सही कहा है लक्ष्यविहीन सफर कहीं भी नहीं ले जाता ... सुंदर अभिव्यक्ति !
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति, बहुत ही गहन बात .
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ३-०९-११ को नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आयें और अपने विचार दें......
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...
सादर...
एक टिप्पणी भेजें