पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

आसान नही होता

कभी देखा है
कहीं भी
भोर को ठिठकते हुये
या सांझ को रुकते हुये
अनवरत चलते रहना
बिना विश्राम किये
सफ़र तय करना
आसान नही होता
एक तय समय सीमा मे बंधना
जीवन चक्र को
निरन्तरता प्रदान करना
आसान नही होता
हर चाहत को
निशा की स्याह चादर मे
दफ़न करना
और फिर भोर मे
अपने अश्रु कणों को
ओस मे परिवर्तित देखना
आसान नही होता
यूं ही दिनो को महीनो मे
महीनो को सालो मे
और सालो को युगो मे
बदलते देखना
मगर अंतहीन सफ़र
तय करते जाना
आसान नही होता
नही पता क्या
एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं
सिर्फ़ मरुस्थल की
मृगमरिचिका होती है

30 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा लिखा है ... ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर चाहत को
निशा की स्याह चादर मे
दफ़न करना
और फिर भोर मे
अपने अश्रु कणों को
ओस मे परिवर्तित देखना

बहुत गहन बात ... जीवन चक्र तो यूँ ही चलता है ..आसान तो कुछ भी नहीं ..

मीनाक्षी ने कहा…

कविता के निराशावाद में भी आशा की किरण दिखाई दी...प्रकृति युगों युगों तक यूँही नियम से अपने काम करती आ रही है..फिर मैं क्यों न उसके कदमों पर चलने की कोशिश करूँ....चाहे जीवन लक्ष्यहीन सा ही हो फिर भी जब तक साँस चले तब तक जीवन गतिशील रहे...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कभी देखा है
कहीं भी
भोर को ठिठकते हुये
या सांझ को रुकते हुये...ek thithki si bhor mere aage aaker ruk gai...tareef karun yaa mahsoos karun , aatmchintan karun !

अजय कुमार ने कहा…

एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं|

बहुत ही सुन्दर और सार्थक बात

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

बहुत ही गहराई के साथ शब्दों को उतारा है आपने अपनी इस रचना में बहुत ही गहनता के साथ लिखा.
अक्षय-मन

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

जीवन के चक्र को समझाती कविता अच्छी बन पड़ी है. वाकई कुछ बातों को भुलाना आसान नहीं होता है.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मर्म छूती हुयी कविता।

विभूति" ने कहा…

आसान नही था इतनी गहरे भावो से सजी रचना लिखना.. पर आपने लिखा है... आपका आभार...

सागर ने कहा…

bhaut hi sundar rachna....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चरैवेति का सन्देश देती हुई सुन्दर रचना!

नुक्‍कड़ ने कहा…

Safar bhavon ka, rahon ka, vicharon ka dimag se hee hota hai shuru aur badhta hai aage hi aage.

मनोज कुमार ने कहा…

हमें प्रक्रुति के उपादानों से अनवरत सीख लेनी चाहिए।

Unknown ने कहा…

भावनाओं से ओतप्रोत रचना.शब्दों का चयन बेहतरीन बधाई

Kunwar Kusumesh ने कहा…

जीवन चक्र की सार्थक/सफल व्याख्या आपकी कविता में देखने को मिली.

बेनामी ने कहा…

यूँ ही महीनो को.......वाह वंदना जी........बहुत गहरी बात कही है आपने......बहुत सुन्दर|

Dorothy ने कहा…

बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जीवन के चक्र को समझाती अच्छी कविता ....!!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक बात

amit kumar srivastava ने कहा…

चरैवति..चरैवति...चरैवति..

Maheshwari kaneri ने कहा…

भावनाओ की सुन्दर अभिव्यक्ति...

ZEAL ने कहा…

Lovely expression !

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

jeewan chakra ki nirantarta pe aapn lagatar sthir man se nirantarta se likha hai..sadhi hui, bandhi hui..shandar kriti..aapka nirantar protsahan mujhe milta rahta hai..is ke liye bhi hardik dhnywad

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन।


सादर

S.N SHUKLA ने कहा…

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल

रजनीश तिवारी ने कहा…

बहुत ही सुंदर ...

Anita ने कहा…

एक लक्ष्यहीन सफ़र के
नसीब मे मंज़िलें नही होतीं
सिर्फ़ मरुस्थल की
मृगमरिचिका होती है

बिलकुल सही कहा है लक्ष्यविहीन सफर कहीं भी नहीं ले जाता ... सुंदर अभिव्यक्ति !

Unknown ने कहा…

खूबसूरत भावाभिव्यक्ति, बहुत ही गहन बात .

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ३-०९-११ को नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आयें और अपने विचार दें......

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...
सादर...