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शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

कब तक भरम में जिए कोई

जब इन्सान टूटता है
तब शब्द भी खामोश
हो जाते हैं
एक कन्दरा में
दुबक जाते हैं
जहाँ सिर्फ स्याह
अंधेरों के और
कुछ नहीं होता
सब शून्य में
जाने लगता है
ज़िन्दगी से मन
उपराम होने
लगता है
कोई साया
अपना नज़र नहीं आता
जो दीखता है अपना
वो कभी अपना
होता ही नहीं
जिसके लिए उम्र
तमाम की होती है
उसे ही तुम्हारी
उम्र का लिहाज़ नहीं रहता
तुम्हारी चाहतों की
परवाह नहीं होती
तुम्हारी रोती सूजी आखें
भी उसके पाषण ह्रदय
को नहीं पिघला पातीं
पता नहीं कैसे
एक उम्र गुजार देते हैं
जहाँ कहीं अपनत्व
होता ही नहीं
सिर्फ समझौते ही
आस पास दस्तक
देते रहते हैं
उनकी खातिर
हर ख्वाहिश को
जिन्होंने ज़िन्दा
दफन किया होता है
वो ही जब
हाथ छिटक देते हैं
मन आहत हो जाता है
और भागता है
खुद से भी
कहीं कोई किरण
नज़र नहीं आती
जीने की वजह
मिटने लगती हैं
और ख़ामोशी
मन की पहरेदार
बन अन्दर की
दीवारे खोखली
करने लगती है
जो एक ठेस से
ही ढह जाती हैं
आखिर उम्र का भी
एक मुकाम होता है
कब तक भरम में जिए कोई
कभी तो ज़मींदोज़ होना
ही पड़ता है कफ़न को

16 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सही है ..भ्रम में कब तक कोई जी सकता है ... अच्छी प्रस्तुति

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आखिर उम्र का भी
एक मुकाम होता है
कब तक भरम में जिए कोई
कभी तो ज़मींदोज़ होना
ही पड़ता है कफ़न को ... aur phir ? to kyun bhram ... bahut hi gahri rachna

Unknown ने कहा…

"कब तक भ्रम में जिए कोई,
कभी तो जमींदोज होना
ही पड़ता है कफ़न को"
ये कविता तो बस इतनी भी कह दी जाती तो पूर्ण होती, सब कुछ कह डाला, कम ही मिलता इतना गहरा उपसंहार कविताओं में. ये ही जीवन का प्रस्तावना हो और यही जीवन का ध्येय भी और जीवन के अंत पर कोई पश्चाताप बाकी ना हो.

Unknown ने कहा…

जीने की वजह
मिटने लगती हैं
और ख़ामोशी
मन की पहरेदार
बन अन्दर की
दीवारे खोखली
करने लगती है
जो एक ठेस से
ही ढह जाती हैं
आखिर उम्र का भी
एक मुकाम होता है

अति संवेदनशील, शिकायतपूर्ण काव्य. शब्द हृदय से निकले हैं और तीर सा वार करने में सक्षम. भूल कभी संबंधों में होती है कभी शब्दों में और ये मानव ही है जो इन सब में सामंजस्य बैठा लेता है खुश होता है कवितायेँ लिखता है श्रेष्ठ कविताये साहित्य की धरोहर . वक्त ऐसे ही निकल जाता है शिकवे शिकायत करने में . बधाई और शुभकामनाये.

Anita ने कहा…

भ्रम तो बस भ्रम ही है इस पर क्या रोना, सत्य चारों ओर है दिल में इसे समोना.. सुंदर रचना !

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

जीवन का सिद्धांत नहीं
यही सच है,
अच्छी तरह पेश किया है आपने

Suresh kumar ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति

Sunil Kumar ने कहा…

यही सच है, अच्छी प्रस्तुति......

Maheshwari kaneri ने कहा…

आखिर उम्र का भी
एक मुकाम होता है
कब तक भरम में जिए कोई
कभी तो ज़मींदोज़ होना
ही पड़ता है कफ़न को ....सुन्दर और बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी रचना लिखी है आपने।

मनोज कुमार ने कहा…

भ्रम से बाहर निकल ही जाना चाहिए। पर मुश्किल होता है।

Ankit pandey ने कहा…

क्या बात है. सच भी है ये. ऐसा ही होता है.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

टूटने में अस्तित्व स्तब्ध हो जाता है।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

ख़ामोशी
मन की पहरेदार
बन अन्दर की
दीवारे खोखली
करने लगती है
जो एक ठेस से
ही ढह जाती हैं

गहन भावाभिव्यक्ति...
सादर बधाई...

Atul Shrivastava ने कहा…

सुंदर प्रस्‍तुति।
गहरे भाव।