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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

बस यूँ ही कभी कभी




बस यूँ ही कभी कभी
तुम ख्यालों में उतर जाते हो
हे ........कैसे आ जाते हो
और सारी कायनात धड़का जाते हो 
जबकि जानते हो 
मैंने तुम्हें कभी बुलाया नहीं
कभी आवाज़ नहीं दी
कभी चाहा भी नहीं
फिर भी ना जाने कैसे
तुम गाहे बगाहे अपनी 
उपस्थिति दर्शा जाते हो
हवाओं के पंखों पर 
पैगाम भेजने का रिवाज़ 
कभी मैंने निभाया नहीं
तुम्हारी नशीली नीली आँखों में 
तैरता गुलाबी ख्वाब 
कभी आकार ले पाया नहीं 
वो देवदार के तले 
तुमने भी कभी 
कोई गीत गया नहीं
और मेरी छत की मुंडेर पर भी 
कभी मेरा दुपट्टा लहराया नहीं
जो तुम्हें इशारा दे देता
फिर बताओ तो ज़रा 
कैसे तुम बिना दस्तक के 
ख्वाबों की तस्वीर बन जाते हो
कैसे तुम इन्द्रधनुषी रंगों सा 
मेरी आँखों में उतर जाते हो
और सारे जहान को तुम्हारे होने का 
आभास करा जाते हो .............
ये आँखों का दर्पण झूठ क्यों नहीं बोलता ...........कभी कभी बस यूँ ही 

28 टिप्‍पणियां:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

एक तो आंख नशीली और ऊपर से नीली भी
वाह
रंग गोरा या गंदुमी हुआ तो और भी फबेगी।

Nice.

अशोक सलूजा ने कहा…

चाहने न चाहने से क्या होता है ...
ये है यादोँ का सिल-सिला यूँ ही रवां होता है ....
शुभकामनाएँ!

समयचक्र ने कहा…

Bhavapoorn rachana ... abhaar

सदा ने कहा…

ये आंखों का दर्पण झूठ क्‍यों नहीं बोलता ...
वाह बहुत खूब ...

kunwarji's ने कहा…

अद्भुत प्रस्तुतीकरण भावो का....

बहुत सुन्दर!

कुँवर जी,

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मन के सुंदर ख्याल......

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कोमल भावों की शाब्दिक अभिव्यक्ति।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

यही ख्‍याल तो दुनिया का सबसे बड़ा चमत्‍कार है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दर्पण झूठ ही तो नहीं बोलता .... सुंदर प्रस्तुति

Aruna Kapoor ने कहा…

दिल के भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!...आभार!

कुमार राधारमण ने कहा…

प्रेमिल मन की कोमल भावनाएं। प्रेम की गरिमा अव्यक्त में ही है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

पूरी कायनात की धड़कन .... बहुत सुन्दर

Anita ने कहा…

जो बिन बुलाए आये, बिन कहे सुन ले... वही तो है, बहुत सुंदर भावों को व्यक्त करती नज्म..

shikha varshney ने कहा…

कभी कभी यूँ ही बहुत कुछ हो जाता है.
सुन्दर प्रस्तुति.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सुन्दर कविता...

बेनामी ने कहा…

वाह स्वप्निल सा अहसास खुबसूरत पोस्ट है दी।

Brijendra Singh ने कहा…

बहुत सुंदर भाव वंदना जी..आभार

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति ।।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

priya ne kabhi devdar ke neeche koi geet nahi gya...preysi ne hawa me dupatta nahi lahrya..phir bhee ye dastak rahsymayee hai...isiliye mohabbat kabhi jaadu lagtia hi..kabhi khuda..bahut hee acchi rachna ke liye aapko sadar badhayee...sadar amantran ke sath

Pratik Maheshwari ने कहा…

बस यूँ ही कभी-कभी.. कोई तो याद आ ही जाता है..
बहुत खूब.. खूबसूरत रचना..

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

wah lajbab prastuti bahut bahut abhar vandana ji.

rashmi ravija ने कहा…

ये आँखों का दर्पण झूठ क्यों नहीं बोलता ...........कभी कभी बस यूँ ही
बड़ी प्यारी सी कविता है...

मनोज कुमार ने कहा…

आंखों का दर्पण .. आंख से मन तक .. और मन का दर्पण तो कभी मैला होता ही नहीं, सुना नहीं आपने मन ही देवता मन ही ईश्वर मन से बड़ा न कोय, ... तोरा मन दर्पण कहलाए ...

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब वंदना जी ..
शुभकामनायें आपको !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपका श्रम सराहनीय है!

वाणी गीत ने कहा…

नशीली नीली आँखें , गुलाबी खयाल
आँखों में इन्द्रधनुष ....
होली का मौसम तो कब का बीता , आपकी कविता में अब तक छाया है !
सुन्दर !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

अनूठे शब्द और अद्भुत भाव से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...

नीरज

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

कैसे तुम बिना दस्तक के ख्वाबों की तस्वीर बन जाते हो कैसे तुम इन्द्रधनुषी रंगों सा मेरी आँखों में उतर जाते हो और सारे जहान को तुम्हारे होने का आभास करा जाते हो

बहुत ही कोमलता सेऔर कुशलता से रंग उकेरे हैं