मेरे मन की ग्रंथियों पर
कोई नाग कुंडली मार
शायद बैठ गया है
तभी तो कोई ग्रंथि
खुल ही नहीं रही
तमस में कहाँ
हाथ दिखाई देता है
फिर इस गहन
तमस में
कौन सी ग्रंथि टटोलूं
कौन सी गांठ खोलूं
एक रंगहीन पर्दा है
जो हटता ही नहीं
और उसके पार भी
दिखता ही नहीं
ना दशा का पता
ना दिशा का पता
फिर मंजिल का निर्धारण कौन करे?
ग्रंथियों के चक्रव्यूह में उलझा मन
भेदने का मार्ग ढूँढ ढूँढ हार गया
मगर ना कोई राह मिली
क्या हर युग में चक्रव्यूह में घिरकर ही अभिमन्यु की मौत निश्चित है ?
24 टिप्पणियां:
अभिमन्यु एक कदम है ... और मृत्यु खुद में एक चक्रव्यूह है ...... मरने से पहले जी लें , वरना मरना तो है ही
यह है बुधवार की खबर ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।
आइये-
सादर ।।
गहन अभिव्यक्ति ॥मन की छटपटाहट को दर्शाती
ऐसा मान लेने वाले की मौत ज़रूर निश्चित है। न युग एक से रहते हैं,न चक्रव्यूह।
आठवाँ द्वार भेदना कौन सिखायेगा भला..
मौत तो होनी ही है ..तो क्यों न लड़ते हुए मरा जाये.
अभिमन्यु अगर स्वयं चक्रव्यूह चुनेगा तो शायद ये सुनिश्चित है।
जीवन एक चक्रव्यूह है और हम एक अभिमन्यु जिस में घिरकर ही अभिमन्यु की मौत निश्चित है।
गहन भाव लिए ... उत्कृष्ट रचना
अभिमन्यु तो अमर है ...कैसे भूल गयीं की कृष्ण भी हैं..
अभिमन्यु तो अमर है ...कैसे भूल गयीं की कृष्ण भी हैं..
इन ग्रंथियों का चक्रव्यूह खुद ही तोड़ना होता है ... कोई नहीं आता साथ देने ... गहरी कविता ...
marna to sabko hai, chahe abhimanyu ho ya koi danav... to jee len abhimanyun ke tarah:)
behtareen!!
अभिमन्यु वीर था , परन्तु बिना पूर्ण ज्ञान के चक्रव्यूह में घुसना उसकी गलती थी . अगर इस युग के अभिमन्यु पूर्ण ज्ञान से चक्रव्यूह में जाते है , तो विजय निश्चित है ! रचना सुन्दर और गहन भाव लिए है . सादर
abhimanyu ko chakrvyuh ne ghera tha..chakrvyuh me abuimanyu gaya tha..lekin yahan granthiyon ne hame ghera hai...hamare seedha sada jeewan me jab granthiyon a palan prambh hua ham bekhabar gathe aaur jab granthiyan fail gayee to ye hamaari pareshani ks sabab ban gayeein..iskee rokthaam sajagta se pahle karnee thee..ab yadai nahi ho payee to phir ladte hue beergati ko prapt hona jyada acchha hoga..sadar badhayee aaur amantran ke sath
अभिमन्यू अभी चालाकी नहीं सीख पाया है।
हर युग में होती रही, अभिमन्यू की मौत।
खुली चुनौती दे रहा, चन्दा को खद्योत।।
achha sansmaran....!!
मन ही अभिमन्यु और मन ही चक्रव्यूह तो मन को ही कृष्ण होना होगा!
गहन भाव लिए सुंदर सी रचना ....
हाँ, लेकिन एक बात है कि अभिमन्यु के पास आठवां द्वार भेदने का 'ज्ञान' नहीं था तो वस्तुतः 'ज्ञान' का अभाव ही चक्रव्यूह नहीं भेद पाने का कारण है
सच्चा ज्ञान हमें हर तरह के चक्रव्यूह से छुटकारा दिला सकता है ......
साभार !!
मन ही मन के चक्रव्यूह से बाहर निकलेगा खोजते खोजते रास्ता जरूर निकलेगा ...मन की परिस्थितियों पर गहन चिंतन दर्शाती रचना बहुत खूब वंदना जी
एक बड़ा सवाल है ये ...गहन अभिव्यक्ति
बेहतरीन रचना, गहन अभिव्यक्ति
(अरुन शर्मा = arunsblog.in)
गहन अभिव्यक्ति ....
सुंदर रचना ..........
एक टिप्पणी भेजें