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शनिवार, 14 जुलाई 2012

जरूरी तो नहीं मानसून की आहटों से सबके शहर का मौसम गुलाबी हो ............



मानसून आ रहा है
मानसून आ रहा है
सिर्फ यही तो उसे डरा रहा है
कल तक जो रहती थी बेफिक्र
आज उसकी आँखों में उतरी है बेबसी
ग्रीष्म का ताप तो जैसे तैसे सहन कर लेती है
कभी किसी वृक्ष की छाँव में सो लेती है 
तो कभी किसी दीवार की ओट में बैठ लेती है
ज़िन्दगी गुजर बसर कर लेती है
शीत भी ना इतना डराता है
तेज ठिठुरती सर्द रातों में 
कुछ अलाव जला लेती है
और रात को सूरज का ताप दिखा
गुजार देती है 
दिन में चाहे चिथड़ों में लिपटी रहती है 
कभी टाट ओढ़ लेती है 
मगर दिन तो जैसे तैसे गुजार लेती  है 
मगर बरसात का क्या करे 
किस दर पर दस्तक दे 
जब बूँदें रिमझिम गिरती हैं 
किसी के मन को मोहती हैं
मगर उसे तो साक्षात् यम सी दिखती हैं
दिन हो या रात 
सुबह हो या शाम
कहीं ना कोई ठिकाना दिखता है
जब चारों तरफ जल भराव होता है
ना रात का ठिकाना होता है
ना दिन में कोई ठौर दिखता है
मूसलाधार बरसातों में तो 
प्रलंयकारी माहौल बनता है 
जब तीन चार दिन तक 
ना पानी थमता है
ना जीवन उसका  चलता है
बस रात दिन दुआओं में 
खुदा से विनती करती है 
ना चैन से सो पाती है 
ना दो रोटी खा पाती है 
बस ऐसी बेबस लाचार 
एक फ़ुटपाथिये की ज़िन्दगी होती है 
जब ऐसे हालातों से पाला पड़ता है
तब मुँह से यही निकलता है
हाँ , मानसून आ रहा है
सिर्फ यही तो उसे डरा रहा है 
जरूरी तो नहीं 
मानसून की आहटों से सबके शहर का मौसम गुलाबी हो ............


20 टिप्‍पणियां:

Neelkamal Vaishnaw ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति @वंदना जी
मानसून आ गया है,,, पर सच में सब के लिए मौसम गुलाबी नहीं हुआ है...

संध्या शर्मा ने कहा…

जी सही कहा है आपने जरुरी नहीं मानसून की आहटों से सबके शहर का मौसम गुलाबी हो और यदि हो भी तो सबके लिए हो... संवेदनशील रचना... आभार

शिवनाथ कुमार ने कहा…

फुटपाथ पर जिंदगी के ऊपर बारिश के कहर को चित्रित करती मर्मभेदी रचना !!

सही कहा आपने, बरसात का मौसम हर किसी के लिए गुलाबी नहीं होता....

Maheshwari kaneri ने कहा…

सच कहा मानसून तो आगया है पर सब के लिए सुखद भी तो नहीं हो सकता है..बहुत सुन्दर...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

ह्रदय द्रवित कर देनेवाली रचना है..
सोच में पड़ गयी हूँ , सारा दृश्य आँखों के सामने
दिख रहा है... आंख भर आई
मार्मिक रचना...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

किसी के लिए राहत , कहीं भय ...

Anupama Tripathi ने कहा…

सच लिखा है ...किसी के लिये नीर भरा ...पीर भरा मॉनसून भी होता है ...!!
सम्वेदंशील अभिव्यक्ति ...!!

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

वंदना,

मानसून उनके लिए तो समस्या हें ही जिनके पास सिर छुपाने के लिए कोई जगह ही नहीं है. हम अपनी बात करते हें. कानपुर शहर में जिनके पास घर हैं, वे भी घर से बाहर निकलने के लिए तरस जाते हैं. मानसून जरूरी है तो इस समस्या से हमें जूझना पड़ता है . हमें कुछ ऐसा ही सोचना पड़ता है.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बेहद खूबसूरत सोच के साथ ...सार्थक कविता

Avinash ने कहा…

Maine kai rat footpat pe gujare hai. Aj uski kripa se adhunik flat me rahta hu. Magar jindagi ka jo maja maine footpat pe liya, us maje ke liye aj bhi tarsta hu. Man jab jyada bojhil ho jata hai to abhi bhi kabhi kabhar kam ke bahane chupke se ek rat footpat pe gujar ata hu. Sach maniye maja aa jata hai aur khoi hui jindagi fir se wapas mil jati hai.

Avinash ने कहा…

Maine kai rat footpath pe gujare hai. Footpath pe taklifen jarur hai magar jindagi ka jo maza footpath pe hai wo mahlon me nahi. Garibi me vairagya hai aur vairagya me anand hai. Unki kripa se aj mai atyadhunik flat me rahta hu. Magar yaha jivan ka anand nahi hai. Jivan suvidhaon ka gulam bankar rah gaya hai. Jab kabhi man jyada bojhil ho jata hai to aaj bhi kisi kam ke bahane chupke se footpath pe rat gujarne chala jata hun aur jindagi ka asli maza wapas pa lete hu. Footpath pe aadmi bhale hi kasht me ho magar uski jindagi hamse jyada khushal hoti hai. Barish ka bhi asli anand footpath pe hi hai. Bhingate huye footpati doston ke sath puri rat gujarna aur bahar se lekar andar tak thandha aur swakchh ho jana man ko kitna sakun deta hai yah batane ke liye mere pas shabd nahi hain. Sundar aur prerak rachna ke liye shukriya. Aj ki meri rat fir se footpath pe hogi.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुप्रतीक्षित फुहारें आयीं..

rashmi ravija ने कहा…

बारिश अच्छी तो बहुत लगती है..पर अक्सर ऐसा ख्याल भी आता है...कुछ लोगो के लिए कितनी कष्टदायक होती है..
सार्थक कविता

gyaneshwaari singh ने कहा…

ek dam sahi kaha apne..mansoon kisi ke liye khushiya lata hai to jinki chat asaman hai unke liye muhskile lata hai.
bahut ashaas hai apki is kavita mein

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

निर्धन को हर मौसम रूलाता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मानसून से होने वाले कष्टों का सशक्त वर्णन ...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

sahi baat hai!

Sadhana Vaid ने कहा…

बेबस एवं मजबूर लोगों के जीवन की निष्ठुर सच्चाई को बहुत सशक्त ढंग उकेरा है वन्दना जी ! बहुत बहुत बधाई आपको ! सच बारिश में इन लोगों का जीवन कितना अस्त व्यस्त एवं मुश्किल हो जाता है इसका जीवंत चित्रण कर दिया है आपने !

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लगी ये पोस्ट।