एक सच ये भी है
नही हूँ व्यथित तुम्हारे लिये
क्योंकि जानती हूँ
होगा कुछ दिन बवाल
शोर चिल पों
सेकेंगे सभी अपनी अपनी रोटी
और फिर हाथ झाड चल देंगे
अगली खबर की तरफ़
तुम एक खबर से ज्यादा क्या हो? कहो तो ?
ये रोज रोज की लीपापोती
अब नही करती व्यथित मुझे
क्या फ़ायदा
क्या इससे मिल जायेगा
तुम्हे तुम्हारा सम्मान
हम महिलायें हैं
सिर्फ़ यहीं गरज बरस सकती हैं
अपने अपने दिल की
भडास निकाल सकती हैं
और फिर हम भी
चल दे्ती हैं
शाम की रोटी चूल्हे पर चढाने
आखिर दो शब्द लिख कर
हमने अपना फ़र्ज़ निभा जो दिया
मगर कभी अपने घर मे ही
अपने लिये मूँह ना खोल पायीं
अपनी बेटी के लिये
ना लड पायीं
गर्भ मे ही जिसे हमने भी दुत्कारा है
और गलती से यदि जन्म दिया है
तो भी ना साथ दिया
तब तुम्हारे लिये क्या लड सकती हैं
क्योंकि
हर लडाई या कहो हर सफ़ाई
घर से ही शुरु होती है ……………
नही हूँ व्यथित तुम्हारे लिये
क्योंकि जानती हूँ
होगा कुछ दिन बवाल
शोर चिल पों
सेकेंगे सभी अपनी अपनी रोटी
और फिर हाथ झाड चल देंगे
अगली खबर की तरफ़
तुम एक खबर से ज्यादा क्या हो? कहो तो ?
ये रोज रोज की लीपापोती
अब नही करती व्यथित मुझे
क्या फ़ायदा
क्या इससे मिल जायेगा
तुम्हे तुम्हारा सम्मान
हम महिलायें हैं
सिर्फ़ यहीं गरज बरस सकती हैं
अपने अपने दिल की
भडास निकाल सकती हैं
और फिर हम भी
चल दे्ती हैं
शाम की रोटी चूल्हे पर चढाने
आखिर दो शब्द लिख कर
हमने अपना फ़र्ज़ निभा जो दिया
मगर कभी अपने घर मे ही
अपने लिये मूँह ना खोल पायीं
अपनी बेटी के लिये
ना लड पायीं
गर्भ मे ही जिसे हमने भी दुत्कारा है
और गलती से यदि जन्म दिया है
तो भी ना साथ दिया
तब तुम्हारे लिये क्या लड सकती हैं
क्योंकि
हर लडाई या कहो हर सफ़ाई
घर से ही शुरु होती है ……………
20 टिप्पणियां:
सच कहा..जख्म सहने की आदत फूलों से ही लगती है..
बस तुम समझो मेरी व्यथा ... और किसी की समझ से परे होगी यह घुटन
सार्थकता लिए सशक्त लेखन ...
एक दम सही कहा हैं आपने
जिस दिन हर स्त्री ये फैसला कर लेगी की सबसे पहले अपने घर की सफाई करेगी सबसे पहले अपने पति और पुत्र और पिता या मित्र को अगर किसी और लड़की के साथ कुछ भी गलत करते देखेगी तो साथ लड़की का ही देगी फिर वो लड़की अपनी बेटी हो या दूसरे की
उस दिन से ही बदलाव आयेगा
यही कहा हैं मैने भी नारी ब्लॉग पर अपनी पोस्ट में
बहुत बहुत सुंदर लगी ये सोच
Sahi kaha aapne.
............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
सार्थक लेखन ... हर लाड़ाई घर से ही शुरू होती है ... बाहर चिल्लाना तो मात्र आडंबर ही है
हर लड़ाई हर सफाई घर से ही शुरू होती है
बहुत ही बेहतरीन कहा है..
अनर्थ को रोकना है तो सभी लोग घर से अपने आस पास के परीसर से शुरूवात तो करके देखे...
उत्कृष्ट रचना...
न अपने साथ होने दें, न औरों को करने दें । शुरुआत तो घर से करनी होगी।
एकदम खरा खरा कहा है..सुधर अपने घर से ही शुरू होता है और होना भी चाहिए.
बिलकुल सही कहा है वंदना जी ....यही दस्तूर बन गया अब मुल्क का।
सशक्त व सार्थक लेखन ...
हर नारी के 'आक्रोश' को दर्शाती सुंदर रचना ....
दुखत..घटना...जिसका ज़िक्र भी करना अच्छा नहीं लगता
जब उस लड़की पर ये सब बीता होगा ...कैसा महसूस किया होगा उस बच्ची ने ??????
गंभीर समस्या पर सामयिक सटीक अभिव्यक्ति ...बहुत बहुत बधाई...
बहुत सुंदर...सशक्त लेखन ...
ऐसा नहीं है वंदना ....इस कांड का जितना विरोध हुआ उसी का नतीजा है मुख्य आरोपी भाग कर भी छुप नहीं पाया ....और पकड़ा गया
और हमारा लिखा कभी व्यर्थ नहीं जाता ....
मेरी कवितायेँ पढ़ न जाने कितनी महिलाओं ने मुझे फोन किया ...आखिर उनके खून में भी बवाल था इसलिए ही न ....
यही बवाल उन्हें घर की सफाई को भी उकसाएगा ....
और यही बवाल भविष्य के लिए ऐसे लफंगों को भयभीत भी करेगा .....
हाँ आपने तस्वीर बड़ी प्यारी लगाई है अब ब्लॉग पर ....:)
मैं तो सोच में पड़ गई कि कहीं ये कोई नई वंदना तो नहीं ....:))
ladai ho ya safai ghar se hee shuru hoti hai..bilkul sahi kaha hai aapne..aajkal bahar sirf log aisa hagama khada karte hain jiska maksad surat badlna bilkul bhee nahi hai
नियम और स्वतन्त्रता सब पर बराबरी से लगे।
सही कहा , सफाई घर से ही होनी चाहिए ...
जो घर में विरोध नहीं कर सका , बाहर क्या करेगा !
गुवाहाटी पर अभी एक पोस्ट लिखी थी.. कुछ नहीं लिखूंगा उसपर.. सोचकर शर्म सी आती हैं...
http://bit.ly/Pr1vCL
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