न जाने
जुदा राहियों को मिलवाता है क्यों
फिर उम्र भर लडवाता है क्यों
क्या मज़ा आता है मोहन
यूँ बादशाहत जताने मे
मानती हूँ मानती हूँ
यूँ अपनी राह चलाता है तू
मोह माया के बंधनों से छुडवाता है यूँ
मगर प्रश्न फिर भी वहीं खडा रहता है
आखिर ऐसा करता है क्यूँ?
जब अलग ही करना होता है
फिर क्यों मिलवाना, लडवाना
और फिर छुटवाना
बेहतर होता जो सबको
नारद बना दिया होता
पैदा होते ही हाथ मे
वीणा पकडा दी होती
कम से कम तुम्हारी भी
यूँ रुसवाई ना होती
कोई तुम पर यूँ
उँगली तो ना उठाता ना
तुम्हारे अस्तित्व पर
प्रश्नचिन्ह यूँ लगाता तो ना
जानते हो कभी कभी
तुम्हारी रहस्यमयी मुस्कान भी
संदेह के घेरे मे आ जाती है
कि जैसे कह रहे हों
मेरे पिंजरे की मैना हो
कहाँ जाओगे
कितना उडोगे
वापस यहीं आना है
है ना माधव ! एक रूप तुम्हारी
व्यंग्यकारी मुस्कान का ये भी
फिर भी कहती हूँ
कभी विचारना इस पर
सोचना , गंभीर
मनन चिन्तन करना
क्या फ़ायदा यूँ खिलौनो को जोडने और तोडने से
और सुना है……… तुम बच्चे नही हो !
14 टिप्पणियां:
भावमय करते शब्द ...
और सुना है ... तुम बच्चे नहीं हो
बहुत खूब ... आभार आपका
खेल तुम्हारे कोई न जाने..
तोडना टूटना जोड़ना जुड़ना .... हरी उतने ही अवश हैं, जितना हम
माधव के खेल निराले हैं .... पता नहीं क्यों करते रहते हैं ऐसा .... सुंदर प्रस्तुति
sarthak prashn .....
bahut sundar rachna ..Vandana ji ..
कान्हा से किया गया ...सीधा सीधा एक सवाल ...जिसका जबाब आना अभी बाकि है ...
वो तो बच्चे नहीं हैं ,पर हम ज़रूर उनके बालक हैं इसीलिए समझ नहीं पाते उनकी लीलाओं को ..
बुत सुन्दर प्रस्तुति वंदना जी
नारद भी उसकी माया से कहाँ बचे थे..
कान्हा ने मुझे पागल बनाया,
ज़हर का प्याला अमृत बनाया
तो क्या हुआ छलिया है
मेरा मुरली वाला
अपने सांवरिया के संग
जाएगी ये बंवारियाँ
जब भी बजाएगा गिरिधर
मनमोहन बांसुरिया
वो सुनता सबकी अर्जी है
पर करता अपनी मर्ज़ी है
और उसकी इच्छा में ही इच्छा
रखना ऐसी मेरी अर्जी है
https://udaari.blogspot.in
कान्हा ने मुझे पागल बनाया,
ज़हर का प्याला अमृत बनाया
तो क्या हुआ छलिया है
मेरा मुरली वाला
अपने सांवरिया के संग
जाएगी ये बंवारियाँ
जब भी बजाएगा गिरिधर
मनमोहन बांसुरिया
वो सुनता सबकी अर्जी है
पर करता अपनी मर्ज़ी है
और उसकी इच्छा में ही इच्छा
रखना ऐसी मेरी अर्जी है
https://udaari.blogspot.in
भावमय प्रस्तुति
Gyan Darpan
वही तो...
जब अलग ही करना है तो मिलवाया क्यूँ...
माधव तेरे खेल निराले है...
एकदम सही बात कहती रचना....
प्रभु की लीला अपरम्पार कौन जान सका है उनकी लीला को आज तक
बहुत मीठी सी शिकायत
सुन्दर कविता
एक टिप्पणी भेजें