सुनो
जानते हो
मुझे प्रेम करना कभी आया ही नहीं
बस चाहतों ने सिर्फ़ तुम्हें चाहा
क्योंकि
तुम धुरी थे और मैं
तुम्हारे चारों तरफ़ घूमता वृतचित्र
कभी जो तुम्हें दिखा ही नहीं
तुमने महसूसा ही नहीं
बस वो ही त्याग किया मैने
क्या प्यार वहीं स्वीकृत है
जहाँ जताकर कुछ छोडा जाये
जहाँ बताकर अपने त्याग को
छोटा किया जाये
जहाँ जेठ की तपती धरती
अपने सेंक से तुम्हें भी तपा दे
जहाँ शून्य से भी सौ डिग्री नीचा तापमान हो
और तुम्हें अपनी कडकडाती हड्डियों
जकडी हुयी साँसों
पथरायी आँखों
का अहसास कराया जाये
तो क्या तभी प्यार होता है
सच जानम …………
मुझे ऐसा प्यार करना कभी आया ही नहीं
प्यार की खन्दकों में तेज़ाब भी खौलते हैं
फिर चाहे ऊपरी सतहें खामोश दिखती हों
इसलिये
सतही प्यार के फ़ूल खिलाने के लिये मैने वो आशियाना बनाया ही नहीं
लेकिन ये सच है ………जैसा तुमने चाहा
वैसा प्यार करना मुझे आया ही नहीं …………
जानते हो
मुझे प्रेम करना कभी आया ही नहीं
बस चाहतों ने सिर्फ़ तुम्हें चाहा
क्योंकि
तुम धुरी थे और मैं
तुम्हारे चारों तरफ़ घूमता वृतचित्र
कभी जो तुम्हें दिखा ही नहीं
तुमने महसूसा ही नहीं
बस वो ही त्याग किया मैने
क्या प्यार वहीं स्वीकृत है
जहाँ जताकर कुछ छोडा जाये
जहाँ बताकर अपने त्याग को
छोटा किया जाये
जहाँ जेठ की तपती धरती
अपने सेंक से तुम्हें भी तपा दे
जहाँ शून्य से भी सौ डिग्री नीचा तापमान हो
और तुम्हें अपनी कडकडाती हड्डियों
जकडी हुयी साँसों
पथरायी आँखों
का अहसास कराया जाये
तो क्या तभी प्यार होता है
सच जानम …………
मुझे ऐसा प्यार करना कभी आया ही नहीं
प्यार की खन्दकों में तेज़ाब भी खौलते हैं
फिर चाहे ऊपरी सतहें खामोश दिखती हों
इसलिये
सतही प्यार के फ़ूल खिलाने के लिये मैने वो आशियाना बनाया ही नहीं
लेकिन ये सच है ………जैसा तुमने चाहा
वैसा प्यार करना मुझे आया ही नहीं …………
10 टिप्पणियां:
जैसा तुमने चाहा ...
क्या बात है ... बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
आभार
नारी मन की सच्ची अभिव्यक्ति ...प्यार शर्तों पर नहीं ...दिल से होता है ...
ओह .... न जाने कैसे प्रेम की तलाश है ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
दो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
पढ़ कर तो ऐसा लगता है कि आप प्यार की पराकाष्टा पर हैं. लगे रहिये, आ ही जायेगा. हम भी कभी ऐसा ही समझते थे.
बढ़िया ढंग से मन की गांठों को खोला है. गहराई तक जाकर भाव व्यक्त किये हैं रचना के लिए बधाई है.
कवि मन ऐसा होता है कि जरूरी नहीं जो लिखा जाये वह भोगा हुआ यथार्थ हो.
पढ़ कर तो ऐसा लगता है कि आप प्यार की पराकाष्टा पर हैं. लगे रहिये, आ ही जायेगा. हम भी कभी ऐसा ही समझते थे.
बढ़िया ढंग से मन की गांठों को खोला है. गहराई तक जाकर भाव व्यक्त किये हैं रचना के लिए बधाई है.
कवि मन ऐसा होता है कि जरूरी नहीं जो लिखा जाये वह भोगा हुआ यथार्थ हो.
भावों का अद्भुत बिस्तार...एक कसक की अनुभूति देता...बहुत खूब!....बढ़िया लगी ये नज़्म. बधाई!
प्यार करने वाले को जताने की जरुरत कहाँ थी , स्वतः अभिव्यक्त हो ही रहता है !!
कितनी गहराई है........ प्यार बोलता नहीं, छूता नहीं... बस महसूस होता है !
~सादर !!!
प्यार की मात्रा और उसे व्यक्त करने में सदा ही भिन्नता रही है।
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