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गुरुवार, 10 जनवरी 2013

बदलना है इस बार नियति

भूतकाल का शोक
भविष्य का भय
और
वर्तमान का मोह
बस इसी में उलझे रहना ही
नियति बना ली
जब तक ना इससे बाहर आयेंगे
खुद को कहाँ पायेंगे?
और सोच लिया है मैंने इस बार
नही दूंगी खुद की आहुति
बदलना है इस बार नियति
भूतकाल से सीखना है
ना कि भय को हावी करना है
और उस सीख का वर्तमान में सदुपयोग करना है
जलानी है एक मशाल क्रांति की
अपने होने की
अपने स्वत्व के लिए एकीकृत करना होगा
मुझे स्वयं मुझमे खोया मेरा मैं
ताकि वर्तमान न हो शर्मिंदा भविष्य से
खींचनी है अब वो रूपरेखा मुझे
जिसके आइनों की तस्वीरें धुंधली न पड़ें
क्योंकि
स्व की आहुति देने का रिवाज़  बंद कर दिया है मैंने  
गर हिम्मत हो तो आना मेरे यज्ञ में आहूत होने के लिए
वैसे भी अब यज्ञ की सम्पूर्णता पर ही
गिद्ध दृष्टि रखी है मैंने
क्योंकि
जरूरी नही हर बार अहिल्या या द्रौपदी सी छली जाऊं 
और बेगुनाह होते हुए भी सजा पाऊँ
इस बार लौ सुलगा ली है मैंने
जो भेद चुकी है सातों चक्रों को मेरे
और निकल चुकी है ब्रह्माण्ड रोधन के लिए ................

15 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 12/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

अशोक सलूजा ने कहा…

ताकि वर्तमान न हो शर्मिंदा भविष्य से ...
बस इसी सोच पर डट जाओ !
शुभकामनायें!

सदा ने कहा…

गहन भाव लिये सशक्‍त लेखन ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भूत का पश्चाताप न करो, भविष्य की चिंता न करो ... वर्तमान चल रहा है ...
बहुत लाजवाब रचना ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अपने स्वत्व के लिए एकीकृत करना होगा
मुझे स्वयं मुझमे खोया मेरा मैं ....
और तब सुबह करीब है ...

Anita ने कहा…

ऐसा ही हो...प्रेरणादायक पंक्तियाँ..आभार!

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

प्रभावशाली ,
जारी रहें।

शुभकामना !!!

आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक अभिव्यक्ति!
आज ऐसे ही तेवरों की जरूरत है!

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

आज वक्त की मांग भी ये ही है ...बहुत खूब

रश्मि शर्मा ने कहा…

प्रेरणाप्रद पंक्‍ति‍यां...

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर ,सार्थक रचना
New post : दो शहीद

डॉ. रजनीश दीक्षित Dr. Rajnish Dixit ने कहा…

Bahut achhi rachna, badhai aapko.

Kailash Sharma ने कहा…

स्व की आहुति देने का रिवाज़ बंद कर दिया है मैंने
गर हिम्मत हो तो आना मेरे यज्ञ में आहूत होने के लिए
...बहुत सशक्त और प्रेरक अभिव्यक्ति..

Onkar ने कहा…

नारी अब अन्याय सहने को तैयार नहीं

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वक़्त के साथ सोच बदल रही है ...और जब नारी खुद सक्षम हो तो अन्याय क्यों सहे ....