भूतकाल का शोक
भविष्य का भय
और
वर्तमान का मोह
बस इसी में उलझे रहना ही
नियति बना ली
जब तक ना इससे बाहर आयेंगे
खुद को कहाँ पायेंगे?
और सोच लिया है मैंने इस बार
नही दूंगी खुद की आहुति
बदलना है इस बार नियति
भूतकाल से सीखना है
ना कि भय को हावी करना है
और उस सीख का वर्तमान में सदुपयोग करना है
जलानी है एक मशाल क्रांति की
अपने होने की
अपने स्वत्व के लिए एकीकृत करना होगा
मुझे स्वयं मुझमे खोया मेरा मैं
ताकि वर्तमान न हो शर्मिंदा भविष्य से
खींचनी है अब वो रूपरेखा मुझे
जिसके आइनों की तस्वीरें धुंधली न पड़ें
क्योंकि
स्व की आहुति देने का रिवाज़ बंद कर दिया है मैंने
गर हिम्मत हो तो आना मेरे यज्ञ में आहूत होने के लिए
वैसे भी अब यज्ञ की सम्पूर्णता पर ही
गिद्ध दृष्टि रखी है मैंने
क्योंकि
जरूरी नही हर बार अहिल्या या द्रौपदी सी छली जाऊं
और बेगुनाह होते हुए भी सजा पाऊँ
इस बार लौ सुलगा ली है मैंने
जो भेद चुकी है सातों चक्रों को मेरे
और निकल चुकी है ब्रह्माण्ड रोधन के लिए ................
15 टिप्पणियां:
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 12/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ताकि वर्तमान न हो शर्मिंदा भविष्य से ...
बस इसी सोच पर डट जाओ !
शुभकामनायें!
गहन भाव लिये सशक्त लेखन ।
भूत का पश्चाताप न करो, भविष्य की चिंता न करो ... वर्तमान चल रहा है ...
बहुत लाजवाब रचना ...
अपने स्वत्व के लिए एकीकृत करना होगा
मुझे स्वयं मुझमे खोया मेरा मैं ....
और तब सुबह करीब है ...
ऐसा ही हो...प्रेरणादायक पंक्तियाँ..आभार!
प्रभावशाली ,
जारी रहें।
शुभकामना !!!
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सार्थक अभिव्यक्ति!
आज ऐसे ही तेवरों की जरूरत है!
आज वक्त की मांग भी ये ही है ...बहुत खूब
प्रेरणाप्रद पंक्तियां...
बहुत सुन्दर ,सार्थक रचना
New post : दो शहीद
Bahut achhi rachna, badhai aapko.
स्व की आहुति देने का रिवाज़ बंद कर दिया है मैंने
गर हिम्मत हो तो आना मेरे यज्ञ में आहूत होने के लिए
...बहुत सशक्त और प्रेरक अभिव्यक्ति..
नारी अब अन्याय सहने को तैयार नहीं
वक़्त के साथ सोच बदल रही है ...और जब नारी खुद सक्षम हो तो अन्याय क्यों सहे ....
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