देख धुआँ धुआँ अक्स मेरा
आज आईने ने दिखा दिया
जो मुझमे से निकल गया
वो सब सच दिखा दिया
अब बचा है क्या मुझमे
गर तू पता लगा सके
तो मुझे भी आ बता जाना
ना पंख रहे ना परवाज़ रही
ना धरती रही ना आकाश रहा
मेरा रौशनी मे नहाता वज़ूद
देख कैसा धुआं धुआँ हुआ
अब मै ना मै रही
एक धुयें की लकीर बन गयी
क्या फ़र्क पडा बता ज़रा
तेरी महफ़िल तो रौशन रही
ना राख हुयी ना बुझ सकी
मै खुद मे ही सिमट गयी
फिर भी देख तेरा कूंचा
ना मुझसे छोडा गया
अब करम है या सितम है ये
वक्त ने तो कर दिया
जो तू मुझमे बस गया
मुझमे मेरा ना कुछ रहा
तभी तो देख वजूद मेरा
आईना सा बन गया
चाहे धुआँ धुआँ ही क्यों ना हुआ
कभी वक्त मिले तो आ जाना
एक नज़र घुमा जाना
जो तू नज़र ना आये तो
मेरी पहचान बता जाना
धुयें की धुंध से बाहर आने की रवायतें जानी हैं कभी …………
12 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर वंदना जी ... इश्क में खुद को जला के धुंआ कर दिया ... सुन्दर भाव!
बहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!
बहुत ही सुन्दर भाव लिए सार्थक प्रस्तुति.
बहुत भाव-पूर्ण रचना है ...."ना राख हुई ना बुझ सकी".....ये पंक्तियाँ विशेषरूप से मार्मिक लगीं .
मेरे ब्लॉग पर भी कृपया एक नज़र डालें ...पता छोड़ रही हूँ ...
http://shikhagupta83.blogspot.in/
एक नज़र घुमा जाना
जो तू नज़र ना आये तो
मेरी पहचान बता जाना
उत्तम रचना
साधुवाद
सादर
चित्र के साथ गज़ब का प्रभाव छोड़ रहे हैं शब्द.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
सादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
सुंदर और सरल शब्दो में
मेरा रौशनी मे नहाता वज़ूद
देख कैसा धुआं धुआँ हुआ
अब मै ना मै रही
एक धुयें की लकीर बन गयी
....वाह...बहुत भावमयी सशक्त अभिव्यक्ति...
एहसासों से से लबरेज...खूबसूरत शब्द.
क्या बात है जी!!
भावमय करते शब्दों का संगम ... अनुपम प्रस्तुति
आभार
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