उफ़ ! ना ना ना
मत कोशिश करना
निकालने या गिनने की
ये तो हसरतें हैं
जो उगी हैं वक्त की सांसों पर
खराश बनकर
क्या फ़र्क पडता है
चेहरा सुन्न हो या
गुलाब सा खिला
हमने तो मोहब्बत कर ली है
जलते आतिशदानों से
आइनों की जरूरत क्या अब
जलती आग के हिंडोलों पर पींगें भरने का अपना ही शऊर होता है
23 टिप्पणियां:
khoobsurat kavita
कमाल का शऊर....
हम्म ... और ये सबके बस की बात नहीं ...
बहुत खूब ...
मुहब्बत की कैसी इन्तहा ...
कोई हद नहीं है मुहब्बत की ये सच है ...
बेहद सुन्दर है।
बहुत ही गहरी बात !!
शुभकामनायें
बढ़िया है आदरेया- -
शुभकामनायें आपको-
hasraten jeeveet rahen..
bahut khub...
अरे वाह!
कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने तो!
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धन्यवाद
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वाह...बहुत खूब
मत कोशिश करना
निकालने या गिनने की
ये तो हसरतें हैं
जो उगी हैं वक्त की सांसों पर
खराश बनकर
....कितना कठिन है यह कार्य...बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...
बस अब बढ़ने के बाद कदम रुकते कहाँ ....
लाजवाब रचना !
गहरी बात
क्या बात है वंदना जी...ठीक ही है..ये इश्क नहीं आसान...... एक आग का दरिया है और...
हाँ, प्रेम करना आग में जलने से क्या कम है?
सिर्फ एक शब्द -- गज़ब !
behatareen
गहन अनुभूति !
सुंदर कविता.
बहुत संवेदनशील शऊर....
मुहब्बत ऐसी होती है..!
वाह . एक अरसे के बाद इतनी जानदार नज़्म पढ़ी ...कमाल के अशआर हैं ...दिल की बात सीधे दिल तक पहुंची।
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