कहाँ जा रही हो
बोलो ना बाबा
अगर कुछ है तो.........
ये तीन पंक्तियाँ
गूँज रही हैं आज भी
मेरे कानों में
तुम्हारी आवाज़ बनकर
देती हैं सदायें
भेजती हैं ना जाने
कितना अनकहे पैगाम
मगर मैंने अब सुनना छोड़ दिया है
जिस दिन से मुड कर आई हूँ
पीछे नहीं देखा.............
जानते हो क्यों?
उस दिन आयी थी मैं
किसी कारण से
अपनी पीड़ा लेकर
रुकी थी तेरी चौखट पर
आवाज़ दी तुझे
मेरे दर्द ने बिलबिलाकर
खामोश आँखों में ठहरे तूफ़ान ने कसमसाकर
क्योंकि
जरूरत थी मुझे तुम्हारी
तुम्हारे साथ की
तुम्हारे काँधे की
और तुम मशगूल थे
अपनी खुशफहमियों में
नहीं था तुम्हें इल्म
मेरी रुसवाई का
तभी तो रुक गए तुम वहीँ
वो तीन पंक्तियाँ कहकर
नहीं की कोशिश जानने की
दर्द के अलाव की
क्यों आवा इतना पका हुआ है
अब इसे तुम्हारी कहूं या अपनी
थी तो बदनसीबी ही
ना तुम जान पाए
ना मैं कह पायी
और दुनिया दो पाटों में बँट गयी
जिसके उस पार तुम
आज भी मुस्कुरा रहे हो
और जिसके इस पार मैं
आज भी अपनी सलीब
आप उठाये यूँ खडी हूँ
गोया रेगिस्तान का सूखा ठूंठ हो कोई
जिस पर कभी कोई मौसम ठहरता ही नहीं
ये दर्द के पिंजर इतने बड़े क्यों होते हैं
जिसमे लाश को खुद ढोना पड़ता है बिना उफ़ किये
कभी देखा वक्त की नज़ाकतों को कहर ढाते हुए .........
लो आज देख लो मेरी बर्बादी की मुंडेर पर कैसे गीत गुनगुना रही हैं
खडी हूँ उस जगह जहाँ से कोई रास्ता निकलता ही नहीं
चारों तरफ सिर्फ दीवारें ही दीवारें हैं
बिना दरवाज़े की
बिना गली के खड़ा मकान
जिसमे कोई खिड़की अब खुलती ही नहीं
ना अन्दर ना बाहर
है तो सिर्फ एक ज़िन्दा आदमकद आईना
जो रोज मुझमे जान फूंकता है
जीने के कलमे पढता है
बिना तोते की गर्दन मरोड़े
सांस लेने को मजबूर करता है
यूँ देखा है कभी तुमने जादूगर को मरते हुए
किसी मुर्दा अनारकली को चिनते हुए
एक श्राप को उम्र कैद की सजा भोगते हुए .............
अब नहीं होकर भी हूँ
और होकर भी नहीं हूँ
ना जाने कौन हूँ
क्या वजूद है
कुछ नहीं पता
कभी तुम तक पहुंचे कोई हवा
तो पूछ लेना मेरा पता
क्योंकि
बिना पते के लिफाफों की हवाओं का अब कोई तलबगार नहीं होता
ना जाने क्यों मेरी आस की दुल्हन अब भी शर्माती ही नहीं .............
बोलो ना बाबा
अगर कुछ है तो.........
ये तीन पंक्तियाँ
गूँज रही हैं आज भी
मेरे कानों में
तुम्हारी आवाज़ बनकर
देती हैं सदायें
भेजती हैं ना जाने
कितना अनकहे पैगाम
मगर मैंने अब सुनना छोड़ दिया है
जिस दिन से मुड कर आई हूँ
पीछे नहीं देखा.............
जानते हो क्यों?
उस दिन आयी थी मैं
किसी कारण से
अपनी पीड़ा लेकर
रुकी थी तेरी चौखट पर
आवाज़ दी तुझे
मेरे दर्द ने बिलबिलाकर
खामोश आँखों में ठहरे तूफ़ान ने कसमसाकर
क्योंकि
जरूरत थी मुझे तुम्हारी
तुम्हारे साथ की
तुम्हारे काँधे की
और तुम मशगूल थे
अपनी खुशफहमियों में
नहीं था तुम्हें इल्म
मेरी रुसवाई का
तभी तो रुक गए तुम वहीँ
वो तीन पंक्तियाँ कहकर
नहीं की कोशिश जानने की
दर्द के अलाव की
क्यों आवा इतना पका हुआ है
अब इसे तुम्हारी कहूं या अपनी
थी तो बदनसीबी ही
ना तुम जान पाए
ना मैं कह पायी
और दुनिया दो पाटों में बँट गयी
जिसके उस पार तुम
आज भी मुस्कुरा रहे हो
और जिसके इस पार मैं
आज भी अपनी सलीब
आप उठाये यूँ खडी हूँ
गोया रेगिस्तान का सूखा ठूंठ हो कोई
जिस पर कभी कोई मौसम ठहरता ही नहीं
ये दर्द के पिंजर इतने बड़े क्यों होते हैं
जिसमे लाश को खुद ढोना पड़ता है बिना उफ़ किये
कभी देखा वक्त की नज़ाकतों को कहर ढाते हुए .........
लो आज देख लो मेरी बर्बादी की मुंडेर पर कैसे गीत गुनगुना रही हैं
खडी हूँ उस जगह जहाँ से कोई रास्ता निकलता ही नहीं
चारों तरफ सिर्फ दीवारें ही दीवारें हैं
बिना दरवाज़े की
बिना गली के खड़ा मकान
जिसमे कोई खिड़की अब खुलती ही नहीं
ना अन्दर ना बाहर
है तो सिर्फ एक ज़िन्दा आदमकद आईना
जो रोज मुझमे जान फूंकता है
जीने के कलमे पढता है
बिना तोते की गर्दन मरोड़े
सांस लेने को मजबूर करता है
यूँ देखा है कभी तुमने जादूगर को मरते हुए
किसी मुर्दा अनारकली को चिनते हुए
एक श्राप को उम्र कैद की सजा भोगते हुए .............
अब नहीं होकर भी हूँ
और होकर भी नहीं हूँ
ना जाने कौन हूँ
क्या वजूद है
कुछ नहीं पता
कभी तुम तक पहुंचे कोई हवा
तो पूछ लेना मेरा पता
क्योंकि
बिना पते के लिफाफों की हवाओं का अब कोई तलबगार नहीं होता
ना जाने क्यों मेरी आस की दुल्हन अब भी शर्माती ही नहीं .............
10 टिप्पणियां:
गहरे जख्म कुरेदती रचना .....
शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर
उत्तम अभिव्यक्ति दर्द को उडेलती सी...
समय मिले तो पधारें
सावधान ! ये अन्दर की बात है.
सार्थक अभिव्यक्ति!
साझा करने हेतु आभार!
दर्द की इन्तहा... आस की दुल्हन ज़िंदा कहाँ... गहरे पीड़ा के एहसास, भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
परिस्थितियों के जाल में फंसी मकड़ी सी औरत क्या कहे क्या कहे मन के अंतर्द्वंद को बखूबी शब्द दिए हैं बहुत खूब वंदना जी मेरी बधाई स्वीकार कीजिये
दर्द का एहसास कराती रचना
LATEST POST सुहाने सपने
bahut khoob vandana ji !
व्यथा में पिरोये हुए शब्द ...सुंदर प्रस्तुति
गहरी पंक्तियाँ
एक टिप्पणी भेजें