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बुधवार, 26 जून 2013

ज़िन्दगी यूं ही कटती रही

तुम कहते रहे मै गुनती रही
ज़िन्दगी यूं ही कटती रही

कभी सलीबों पर लटकती रही
कभी ताजमहल बनाती रही
ज़िन्दगी यूं ही कटती रही

कभी रूह पर ज़ख्म देती रही
कभी मोहब्बत के फ़ूल खिलाती रही
ज़िन्दगी यूं ही कटती रही

कभी तुझमे मुझे ढूँढती रही
कभी इक दूजे मे गुम होती रही
ज़िन्दगी यूँ ही कटती रही

कभी सब्जबाग दिखाती रही
कभी हकीकत डराती रही
ज़िन्दगी यूँ ही कटती रही

कभी राह रौशन करती रही
कभी शम्मा बन जलती रही
ज़िन्दगी यूँ ही कटती रही

13 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

आपकी ,क्या मेरी
ऐसी ही कटती सबकी
खूबसूरत अभिव्यक्ति ....

बेनामी ने कहा…

सुंदर लिखा

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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर स्वगत गीत!
इसी उधेड़-बुन में पूरा जीवन बीत जाता है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी सलीबों पर लटकती रही
कभी ताजमहल बनाती रही
ज़िन्दगी यूं ही कटती रही ...

जिंदगी ऐसे ही कट जाती है ... कभी खुशी कभी गम आते हैं जाते हैं ... उम्दा रचना ..

Unknown ने कहा…

वाह सटीक , जिंदगी तो कटती है या चलती है सटीक विवेचन

Pallavi saxena ने कहा…

जीना इसी का नाम है।

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति आभार संजय जी -कुमुद और सरस को अब तो मिलाइए. आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

shalini rastogi ने कहा…

बहुत खूब वंदना जी !

शिवनाथ कुमार ने कहा…

जिन्दगी कुछ यूँ ही कटती है
कुछ ख़ुशी तो कुछ गम के संग
सुन्दर

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

आज की ब्लॉग बुलेटिन दुर्घटनाएं जिंदगियां बर्बाद करती हैं और आपदाएं नस्ल .......... मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
सादर आभार !

Unknown ने कहा…

बेहद सटीक रचना वन्दना जी,जिंदगी इसी का नाम है आभार।

HARE RAM MISHRA ने कहा…

सृष्टी तो चलती रहेगी और दुनिया भी नहीं रुकेगी। धन्यवाद ............

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना..