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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

ख्यालों की दस्तक बेवजह भी हुआ करती है

कुछ दिल की थीं अपनी रवायतें 
कुछ ज़िन्दगी से थीं शिकायतें 
चल तो दिये थे सफ़र में मगर 
कुछ रुसवाइयों की थीं अपनी इनायतें 

( मुकम्मल ज़िन्दगी और मुकम्मल जहान की खुशफ़हमियाँ ही शायद ज़िन्दगी गुजारने का ज़रिया हैं ) 

वरना 

किसे मिली जमीं किसे मिला आसमाँ 
हर आदम का नसीबा है इक दूजे से जुदा 

ना होता कोई सडक की खाक कोई महलों का बादशाह
इक दिन पल लग्न मुहुर्त में जिनका था जन्म हुआ 

ना बैसाखियों के दिन होते ना पलस्तरों की रातें 
जो कर्म की भट्टी में नसीब के दाने जल जाते 

फिर गरीब के झोंपड़ में भी नीलकलम खिल जाते 
जो ज़िन्दगी की स्लेट से नसीब के खेल मिट जाते 

फिर जात पाँत से ऊपर दिल के लेख लिखे जाते 
मिलन बिछोह के सारे तटबंध ही मिट जाते 

यूँ आसमान के सीने पर चहलकदमी कर पाते 
जो हाथ ना भी पकड़ते मगर साथ तो चल पाते 

( ख्यालों की दस्तक बेवजह भी हुआ करती है ..........यूँ ही भी )



25 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

Darshan jangra ने कहा…

सुन्दर रचना ,

बेनामी ने कहा…

वाह वाह क्या बात बहुत सुन्दर

Tanuj Vyas ने कहा…

Bahut khoob

Tanuj Vyas ने कहा…

Bahut khoob

Unknown ने कहा…

आपकी यह रचना दिनांक 19.07.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर एक को सब कुछ कहाँ मिलता है ... सुंदर प्रस्तुति

Unknown ने कहा…

मिली है आज तक यहाँ एक के हाथ से दुजे की कलाई...

दिल पानी सा साफ हो..
ना हो दुध अलग, ना अलग मलाई...

भले हो सोने का पेन......
चाहे मिले चांदी की स्याही....

जब भी लिखे मेरी कलम...
हर सही बंदे के लिए लिखे बस "भाई"..
लिखे बस "भाई"...

Unknown ने कहा…

कैसे गुज़रती रात अँधेरा ग़दर में था
मेरे उफक का चाँद तो तेरे शहर में था
मैंने गुनाह करके आज तौबा कर तो ली
पर प्यार तेरा मेरी ख़ता के असर में था
खुद को बचाती गर तो बचाती मैं किस तरह
जितना भी ऐब था वो मेरे मोतबर में था
मैंने ग़ज़ल के पेंच -ओ-ख़म को जान लिया है
वो दर्द लाज़मी था जो मेरे जिगर में था
जब से गया है हाथ ख़ुदारा छुडा के तू
कुछ भी मज़ा न अब कहीं मेरे सफ़र में था
जोश-ओ-जुनूँ संभालती तो किस तरह 'अमूल'
मेरा असीम मेरा ख़ुदा एक घर में था........

Unknown ने कहा…

चाँद भी देखा फूल भी देखा
बादल बिजली तितली जुगनूं कोई नहीं है ऐसा
तेरा हुस्न है जैसा...

मेरी निगाहों ने ये कैसा ख्वाब देखा है
ज़मीं पे चलता हुआ माहताब देखा है

मेरी आँखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर
किसका चेहरा अब मैं देखूं तेरा चेहरा देखकर
मेरी आँखों ने ...

नींद भी देखी ख्वाब भी देखा
चूड़ी बिंदिया दर्पण खुश्बू कोई नहीं है ऐसा
तेरा प्यार है जैसा
मेरी आँखों ने ...

रंग भी देखा रूप भी देखा
रस्ता मंज़िल साहिल महफ़िल कोई नहीं है ऐसा
तेरा साथ है जैसा
मेरी आँखों ने ...

बहुत खूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
बना दीजिए इनको किस्मत हमारी
उसे और क्या चाहिये ज़िंदगी में
जिसे मिल गई है मुहब्बत तुम्हारी,.......

Unknown ने कहा…

बेहद सुन्दर रचना वंदना जी आभार।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत खूब

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बिन पूछे,बिन बताए, जिसके हिस्से जो आ जाए!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

हाँ ,सिर्फ़ अनुमान ही कर सकते हैं कि ऐसा होता तो कितना अच्छा होता,पर क्या पता तब मन वैसा होता कि नहीं होता !

Anita ने कहा…

संसार तो इसी का नाम है..अगर सब कुछ ठीक हो यहाँ तो भगवान को कोई याद ही न करे...

Aparna Bose ने कहा…

उम्दा ….

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत खूब....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना....

Anamikaghatak ने कहा…

wah wah wah.....adbhut shabd sanyojan

somali ने कहा…

bahut khub mam.......

Ranjana verma ने कहा…

बेहतरीन बहुत खुबसूरत!!

Ranjana verma ने कहा…

बेहतरीन बहुत खुबसूरत!!

Ranjana verma ने कहा…

बेहतरीन बहुत खुबसूरत!!

Bhagirath Kankani ने कहा…

neelkalam nahi hota neelkamal hota hai.

Bhagirath Kankani ने कहा…

Neelkalam nahi hota Neelkamal hota hai