बहुत दिन हुए
हंगामा नहीं बरपा
बहुत दिन हुए
किसी ने हाल नहीं पूछा
बहुत दिन हुए
कहीं कोई शोला नहीं भड़का
और मैं अपने दड़बे में
महज कैदी सा बन रह गया
न कहीं आलोचना
न कोई प्रसिद्धि
न कोई मेरा नामलेवा रहा
सब अपने अपने खेमों में मशगूल
उफ़ ! इतनी ख़ामोशी ठीक नहीं
इतना सन्नाटा तो
मुझे ही लील जाएगा
जब तक एक झन्नाटेदार तमाचा
न पड़े और आवाज़ न हो
कैसे संभव है शोर मचना
मेरा नाम ले ले आंदोलन होना
मेरे नाम की तख्ती का
हर गली हर मोड़ पर लगे होना
जरूरी है अपनी पहचान बनाये रखने को
हंगामों की फेहरिस्त में खुद को शामिल रखना
यूँ भी ज़माने की याददाश्त बहुत कमज़ोर है
और मुझे याद बन रहना है
एक कील बन चुभते रहना है
ज़ेहन की दीवारों में
एक सोच बन करवाने हैं
क्रांतिकारी आंदोलन
मसीहा बनने से क्रांतियाँ नहीं हुआ करतीं
ये जानते हुए
ख़बरों में बने रहने के लिए
जरूरी है मेरा आलोचनाओं से सम्बन्ध
फिर वो चाहे पक्ष में हों या विपक्ष में
ज़माने की आँख और सोच में
घुन बन लगे रहना है
क्योंकि
मेरी शिराओं में लहू की जगह बहती है ईर्ष्या
मेरे शरीर में अस्थि माँस मज्जा की जगह
ले रखी है प्रसिद्धि ने
और खाल ओढ़ ली है भेड़िये सी आत्मसंतुष्टि की
ऐसे में कैसे संभव है मेरा बचा रहना
सन्निपात की कोई दवा नहीं हुआ करती
और मैं घिरा हूँ आत्मप्रशंसा , आत्मवंचना की
झूठी फरेबी बेड़ियों के मोहजाल में
क्योंकि
मेरा जीवन है यही
मेरी सांस , मेरी आस , मेरा विश्वास है
सिर्फ यही
कि
खबर में बने रहने के लिए जरूरी होता है
कभी कभी
खुद पर खुद ही प्रहार
या आलोचनाओं का गर्म बाज़ार
फिर चाहे कोई कहे
सब जानते भी क्यों भ्रमजाल में उलझे हो
तो प्रिय
ये ही तो शगूफे होते हैं आत्मप्रसिद्धि के
जो हर बार हवा का रुख मोड़ दिया करते हैं
और मैं कोई अलग कौम का वासी नहीं हूँ
उन्हीं में से हूँ , तुम्हीं में से हूँ
अब चाहे तुम उन्हें कोई नाम दो
राजनीतिज्ञ ,कलाकार या साहित्यकार
मेरा पेशा है
खबर में बने रहने के लिए
हर हथकंडे अपना अपने लिए जगह बनाए रखना
ख्वाब को हकीकत का जामा पहनाने के लिए
महज चुप्पी के खोल में सिमट नहीं खेली जातीं गोटियाँ
जीतने और प्रसिद्धि पाने के भी अपने ही शऊर हुआ करते हैं ……
1 टिप्पणी:
शोर हंगामे में रहने वालों को चुप्पी अधिक खलती है।
सोशल साइट्स ने तो आम आदमी को भी इस शोर में जकड लिया है !
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