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बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

चेतनामयी






हैलो
मुझे वंदना गुप्ता जी से बात करनी है
जी मैं बोल रही हूँ
मैं चित्रा मुद्गल बोल रही हूँ

उफ़ ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे , दिल की धडकनें तेज हो उठीं और मैं उछल पड़ी . कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो सुना सही सुना . उसके बाद बात का सिलसिला शुरू हुआ जब दी ने कहा , ' वंदना , संवेदन पत्रिका में तुम्हारी कवितायें पढ़ीं जिन्होंने मुझे तुमसे बात करने को मजबूर किया , मैं रुक नहीं सकी तुमसे बात करने से .

बेशक इससे पहले हम दो - तीन बार मिल चुके थे लेकिन वो मेरे बारे में ज्यादा कुछ जानती नहीं थीं और उसके बाद उन्होंने मुझे अपने कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया .

चित्रा मुद्गल दी द्वारा संचालित ' चेतनामयी संस्था ' में डॉ कुंवर बेचैन जी की अध्यक्षता में डॉ रमा सिंह जी के साथ मुझे भी  कल ६ अक्टूबर को कविता पाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ जो मेरे लिए किसी दिवास्वप्न से कम नहीं था . अपने समय की देश विदेश में जानी मानी सभी बड़ी हस्तियाँ और उन सबके बीच मुझ सी नाचीज़ को यदि ऐसा मौका मिले तो उसे स्वप्न सच होना न कहूं तो क्या कहूं समझ नहीं आ रहा . औपचारिक रूप से शाल , फूलों का गुलदस्ता और मानदेय देते हुए अतिथियों का संस्था की कर्मठ अनीता जी ने स्वागत किया और फिर ईश वंदना के साथ कार्यक्रम का आरम्भ किया गया .

चेतनामयी संस्था में सिर्फ स्त्रियों का ही साम्राज्य है जहाँ वो साहित्य को पूर्ण रूप से समर्पित हैं जिसका अंदाज़ा आपको तब होता है जब आप कविता सुनाते हैं तो हर शख्स एक एक पंक्ति को इतने ध्यान से सुनता है कि कविता के बाद उस पर अच्छा खासा विमर्श भी होता है और मेरे साथ तो ये एक ऐसा मौका था कि जो हो रहा था वो मैंने सोचा भी नहीं था .

मेरी पहली दो कवितायें ' मेरे फुंफकारने भर से ' और ' क्योंकि अपराधी हो तुम ' को तो आग्रह करके दो दो बार सुना और मैं आश्चर्यचकित इतने सुधि श्रोता पाकर . यूँ मैंने चार कवितायें सुनाईं जिसमे से एक प्रेम कविता और एक पौराणिक चरित्र गांधारी पर थी तो उस पर भी काफी विमर्श चलता रहा .

किसी भी रचनाकार के लिए वो पल अविस्मर्णीय बन जाते हैं जब अपने समय की बड़ी हस्तियों से भी दाद पाए और इतने बढ़िया श्रोता मिलें और ये मेरा एक ऐसा ही दिन था जिसने मुझे अभिभूत किया .

सबसे बड़ी बात डॉ रमा सिंह जी और डॉ कुंवर बेचैन जी के साथ ने केवल बैठना बल्कि उन्हें सुनना एक उपलब्धि से कम नहीं . रमा सिंह जी के गीतों और गजलों में जहाँ जीवन दर्शन समाया था वहीँ डॉ कुंवर बेचैन जी ने शहर और गाँव के अंतर के साथ मध्यमवर्गीय जीवन का एक ऐसा खाका पेश किया जो शायद हर घर की कहानी है लेकिन संवेदना का उच्च स्तर ही मनोभावों को छूता है . उसके बाद संक्रमण और फिर जब अंत में अपनी प्रसिद्ध कविता  ' बदरी ' सुनाई तो ज्यादातर सभी की आँख भर आई .

डॉ साहब का ये कहना कि 'मैंने अपने इतने साल के समय में ऐसा माहौल नहीं देखा' ही सिद्ध करता है कि कैसे चित्रा दी साहित्य की सच्ची सेवा कर रही हैं . चित्रा दी दिल से आभारी हूँ जो आपने मुझे इस काबिल समझा और इतने बढ़िया श्रोता उपलब्ध करवाए .
अंत में यही कह सकती हूँ सुधि श्रोता किसी भी कार्यक्रम की जान होते हैं .




अंत में सबसे बड़ी बात : ' संवेदन ' पत्रिका निकालने वाले राहुल देव की हार्दिक आभारी हूँ जो मुझे पत्रिका का हिस्सा बनाया . जिसे पढ़ स्वयं चित्रा दी का मुझे फ़ोन आया और मुझे इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने का उन्होंने ये सु-अवसर दिया .

कहने को इतना है कि कहती जाऊं और बात ख़त्म न हो और शायद तब भी पूरा न कह पाऊँ लेकिन उस वजह से पोस्ट बड़ी हो जाएगी इसलिए जो ट्रेलर दिखाया है उसी से सब्र करना पड़ेगा :)

फिलहाल जो चित्र उपलब्ध हैं उन्हीं से काम चलाइये ये भी डॉ कुंवर बेचैन जी के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं .

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर

चर्चा - 2123
में दिया जाएगा
धन्यवाद

mohan intzaar ने कहा…

आपको हार्दिक बधाई ....सादर