जिन राहों की कोई मंजिल नहीं होती
वहां पदचिन्ह खोजने से क्या फायदा
ये जानते हुए भी
आस की बुलबुल अक्सर
उन्ही डालों पर फुदकती है
ख्यालों की बंदगी करने लगती है
शायद ऐसा हो जाए
न न ऐसा ही होगा
ऐसा ही होना चाहिए
आस का कोई भी पहलू
एक बार बस करवट बदल ले
उम्मीद के चिराग देह बदलने लगते हैं
जबकि
जानते सभी हैं ये सत्य
सिर्फ ख्यालों और चाहतों की जुगलबंदियों से नहीं बना करते नए राग
अब ये मानव मन की विडंबना नहीं तो और क्या है ?
3 टिप्पणियां:
जिन राहों की कोई मंजिल नहीं होती
वहाँ पदचिह्न खोजने से क्या फायदा
अच्छी रचना है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-11-2015) को "कलम को बात कहने दो" (चर्चा अंक 2150) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
achhi kavita
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