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मंगलवार, 21 जून 2016

राजपथ पर योगाभ्यास

समुद्र सूख रहा है
और तलहटी में बिलबिला रही हैं
सुनहरी , हरी , नीली मछलियाँ

कोई उद्यम नहीं करना अब
जिंदा रहने को जरूरी है पानी

और पानी
आज सूख चुका है
हर नदी तालाब और कुओं से
फिर क्या फर्क पड़ता है
इन्सान और इंसानियत के पानी पर
कोसने के लतीफे गढ़े जाएँ
फफोलों का पानी काफी है जीने के लिए

ये चुकने का समय है
इंसान कहलाने वाले दानव का
पानी कोसों दूर, न था न है
बस शर्मसारी को थोक में बेचा गया बाज़ार में

अब खाली लोटे लुढ़क रहे हैं
टन टन की आवाज़ के साथ
और टंकारों से अब नहीं होतीं क्रांतियाँ

ये आँख का पानी मरने का समय है
ये चुल्लू भर पानी में डूबने का समय नहीं

तो क्या हुआ
जो सूख रहा है समुद्र
तुम्हारी संवेदनाओं का
आशाओं का
विश्वास का

पानी समस्या नहीं
इंसानियत जिंदा थी, है और रहेगी
बिना पानी भी
फिनिक्स सी ...
ये समय है
दरकिनार करने का
छोटी मोटी बातों को

कि
स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का विकास संभव है
काया का निरोगी होना जरूरी है
बिना पानी भी

आओ राजपथ पर करें योगाभ्यास

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-06-2016) को ""वर्तमान परिपेक्ष्य में योग की आवश्यकता" (चर्चा अंक-2381) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'