मेरी मोहब्बत के अश्क
जज़्ब ही हुए
बहने को जरूरी था
तेरी यादों का कारवाँ
लम्हे ख़ामोशी से समझौता किये बैठे हैं
इंतज़ार की कोई धुन होती तो बजाती
इतनी खाली इतनी उदास मोहब्बत
ये मोहब्बत का पीलापन नहीं तो क्या है ?
और ये है मोहब्बत का इनाम
कि
अब तो आह भी नहीं निकलती
मेरी मोहब्बत के रुसवा होने का अंदाज़ ज़माने से कुछ जुदा ही रहा
फिर उस इश्क का इकतारा कैसे बजाऊँ
जिसके सब तार टूट चुके हों
आमीन कहने को जरूरी है कोई इक दुआ .........
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25 - 08 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2445 {आंतकवाद कट्टरता का मुरब्बा है } में दिया जाएगा |
धन्यवाद
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