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सोमवार, 2 जनवरी 2017

मुझे गुजरना था

मुझे गुजरना था
मैं गुजर गयी
वक्त की नुकीली पगडण्डी से 


तुम्हें ठहरना था
तुम ठहर गए
रेत के ठहरे सागर से 


अब
हाशियों के चरमराते पुलों से
नहीं गुजरती
कोई रेल धडधडाती सी
क्योंकि
सूखे समन्दरों से मोहब्बत के ताजमहल नहीं बना करते ...


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©वन्दना गुप्ता vandana gupta

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