मेरे फुफकारने भर से
उतर गए तुम्हारी
तहजीबों के अंतर्वस्त्र
सोचो
यदि डंक मार दिया होता तो ?
स्त्री
सिर्फ प्रतिमानों की कठपुतली नहीं
एक बित्ते या अंगुल भर नाप नहीं
कोई खामोश चीत्कार नहीं
जिसे सुनने के तुम
सदियों से आदि रहे
अब ये समझने का मौसम आ गया है
इसलिए
पहन लो सारे कवच सुरक्षा के
क्योंकि
आ गया है उसे भी भेदना तुम्हारे अहम् की मर्म परतों को…… ओ पुरुष !
डिसक्लेमर :
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
1 टिप्पणी:
.. बहुत सुन्दर, प्रसंशनीय!!!
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