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सोमवार, 1 सितंबर 2008
ज्वार भाते ज़िन्दगी को कहाँ ले जायें पता नही ज़िन्दगी भी कब डूबे या तर जाए पता नही बस ज्वार भाते आते रहते हैं और आते रहेंगे न पूनम की रात का इंतज़ार करेंगे न अमावस्या की रात का बस ज़िन्दगी इन्ही ज्वार भाटों के बीच कब डूबती या समभ्लती जायेगी पता नही
1 टिप्पणी:
bahut sundar... Vandana ji.
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