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मंगलवार, 9 सितंबर 2008
उदास नज़र आता है हर मंज़र नज़र आता नही कहीं गुलशन हर तरफ़ क्यूँ उदासी छाई है या फिर मेरे दिल में ही तन्हाई है हर शय ज़माने की नज़र आती है तनहा समझ आता नही ज़माने की उदासी का सबब वीरान सा नज़र आता है हर चमन या फिर मेरी नज़र में ही वीरानी छाई है
1 टिप्पणी:
बहुत ही अच्छी कविता।
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