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मंगलवार, 6 जनवरी 2009

मकबरा

दिल कि कब्रगाह में न जाने
कितनी कब्र दफ़न हैं
हर राह पर मौत से मिले हम
हर मोड़ पर मौत का
नया रूप देखा हमने
हर बार किसी न किसी
ख्वाब को दफ़न किया
हर कब्र पर ख़ुद ही
फूल चढाये हमने
हर कब्र पर इक
ज़ख्म बना हुआ है
अब तो दिल इक
मकबरा बन गया है
जहाँ इबादत होती है
उन यादों कि
जो वहां दफ़न कि हमने

3 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

हर बार किसी न किसी
ख्वाब को दफ़न किया
हर कब्र पर ख़ुद ही
फूल चढाये हमने

क्या कहूँ। बहुत अच्छा लिखा हैं।

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

यादों की इबादत बहुत खूब पर उन्हें दफ़न मत कीजिये ऐसा करने से न आपको खुशी होगी न हमें हम भी तो उन यादों मे जगह रखते हैं.....
तो क्या आप हमें भी??????
बहुत मार्मिक रचना है दर्द की अनोखी अनुभति हुई....


अक्षय-मन

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana ji

is kavita ne dil ko choo liya , kahan se le aayi ye bhaav....

ham saare insaano ki zindagi kuch aise hi hai ...

badhai , is khoobsurat nazm ke liye ...