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मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

दुनियादारी हर काम के बीच क्यूँ आ जाती है

दुनियादारी हर काम के बीच क्यूँ आ जाती है
कभी समाज के साथ
तो कभी हकीकत के साथ
कभी प्यार के साथ
तो कभी रुसवाई के साथ
दुनियादारी अपना रंग
दिखा ही जाती है
और हम दुनियादारी के
भंवर में फंसे
कभी ख़ुद को भुलाते हैं
कभी अपने प्यार को
कभी वादों को भुलाते हैं
तो कभी इरादों को
इस दुनियादारी के
अजीबो-गरीब रंगों में
कभी ख्वाबों को बुनते हैं
तो कभी उन्हें टूटते देखते हैं
कभी परम्पराओं के नाम पर
तो कभी रुढियों के नाम पर
कभी रिवाजों के नाम पर
तो कभी खोखले उसूलों के नाम पर
दुनियादारी हर बार
हर काम के बीच
इक दीवार बन ही जाती है
और हम न चाहते हुए भी
दुनियादारी निभाने को
मजबूर हो जाते हैं

10 टिप्‍पणियां:

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

Wah-wah-wah-wah-wah-wah

Prem Farukhabadi ने कहा…

Vandana ji
aapki rachna pasand aayi.


इस दुनिया में आके
दिल से दिल लगाके
जिसने प्यार न किया
उसने यार न जिया।
मैंने यह गीत का मुखडा लिखा है । पूरा गीत नहीं बन पा रहा है। ब्लोगरो से अपील है की मेरा यह गीत पूरा करने में मदद करें। गीत की पाँच अंतरा लिखनी हैं। जो भी ब्लोगर अंतरा लिखेगे उनका नाम अंतरा के सामने लिखा जाएगा। कमेन्ट बॉक्स में अपनी अंतरा लिखें । धन्यबाद ।

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

na chaahte huye bhi duniyaadaari ke bhanvar men fasna aur nibhaana hamaari mazboori hi hoti hai , shaayad ise hi duniyadari kahte hain,
- vijay

अनिल कान्त ने कहा…

Ye Duniya Agar mil bhi jaye to kya hai !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

दुनियादारी में दुनिया के अपने तौर-तरीके होते हैं।
आप एकाकी हो सकते हैं लेकिन दुनिया तो नही हो सकती।
दुनिया में सफल जिन्दगी बिताने के लिए
रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ सभी को मानना होगा।

shivraj gujar ने कहा…

bahut hi badiya. hum duniya main rahate hain isliye hamen duniyadaari bhi nibhani padegi. yahi dastoor hai.

दर्पण साह ने कहा…

...dunidayari nibhani ko mazboor..

badhiya!!
badhai!!!

Vinay ने कहा…

बहुत अच्छी रचना है!

रंजू भाटिया ने कहा…

दुनिया में रहना है तो इस के दस्तूर भी निभाने होंगे ..अच्छी लिखी ही आपने यह कविता

बेनामी ने कहा…

सुन्दर रचना