ये आसमान में उड़ने वाले
उन्मुक्त पंछी हैं
मत रोको इनकी उडान को
मत बांधो इनके पंखों को
बढ़ने दो इनकी परवाज़ को
फिर देखो इनकी उड़ान को
क्यूँ बांधते हो इन्हें
साहित्य के दायरों में
साहित्य तो ख़ुद बन जाएगा
एक बार उडान तो भरने दो
मत ललकारो प्रतिभावानों को
प्रतिभा स्वयं छलकती है
किसी भी साहित्य के दायरे में
प्रतिभा भला कब बंधती है
साहित्य भी कब बंधा है किसी दायरे में
हर इंसान में है साहित्य छुपा
जिसने भी रचना को रचा
वो ही है साहित्यकार बना
साहित्य ने कब बांधा किसी को
वो तो स्वयं शब्दों में बंधता है
शब्दों के गठजोड़ से ही तो
साहित्यकार जनमता है
हर लिखने वाला इंसान भी
बाँध रहा संसार को
वो भी तो साहित्यकार है
एक घर है परिवार है
इसलिए
मत रोको इनकी उडान को
11 टिप्पणियां:
जिसने रचनाकारी की वो ही है जगत-नियन्ता।
साहित्यकार ही कहलाता है शब्दो का अभियन्ता।।
पर रचना ने कब यह माना वो तो अड़ी हुई है।
इसीलिए साहित्यकार के मन में पड़ी हुई है।।
बहुत सुन्दर रचना लगी बधाई .
bahut sahi rachna likhi aapne ...badhayi
साहित्यिक स्वातंत्र्य की लिखी आपने बात।
रचना बेहतर बन पड़ी छुपा हुआ जज्बात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सही कहा आपने. सुन्दर रचना.
वंदना जी
साहित्य को उद्देश्य बना कर लिखी रचना ने निश्चित तौर पर साहित्य को नया आयाम दिया है.
बात सही है की आप अभिव्यक्त तो कीजिये आप में साहित्य तो छिउपा हुआ है उसे बस बाहर लेन की आवश्यकता है.
सुन्दर रचना
- विजय
सुन्दर ढ़ग से कही गई एक सच्ची बात।
वंदना जी
मेरी अपनी राय में अगर किसी चीज़ पर अंकुश न लगाया जाय तो क्या होगा,जैसे क्यारियों की उडान को,लड़कियों की उडान को, लड़कों की उडान, महिलाओं की उड़ान को,पुरुषों की उड़ान को, या फिर साहित्य क्षेत्र में, जीवन की हर चीज उचित रूप में अच्छी लगती है.सजी संवरी चीजे ही अच्छी लगती हैं वंदना जी मेरी टिप्पणी को अन्यथा न लें . इसका मतलब ये कतई नहीं है कि मैं आपकी रचनाये पसंद नहीं करता हूँ मेरी शुभ कामनाये आपके साथ हैं.
bahut achcha likha. badhai.
mujhe to apki baat sau fi sadi satya lagi,
jab main sahityakaar banne ki soch sakta hoon...
:)
on a serious note , good poem:
"sahitya ne kab baandha hai kisi ko?"
जिसने भी रचना को रचा
वो ही है साहित्यकार बना
वाह, बहुत गहरी बात लिख दी.
बधाई हो,
आभार हर साहित्यकार को संबल प्रदान करने का.
चन्द्र मोहन गुप्त
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