शब्दों के आमंत्रण पर
मैं बिन डोर
खिंची चली आती हूँ
शब्दों के सागर में फिर
बिन पतवार
नाव चलाती हूँ
कभी डूबती हूँ
कभी उतराती हूँ
तो कभी शब्दजाल के
भंवर में फंस जाती हूँ
शब्दों की आँख मिचोनी में
कभी शब्द विलीन हो जाते हैं
तो कभी मैं कहीं खो जाती हूँ
फिर शब्द खोजते हैं मुझको
और मैं शब्दों की चादर
ओढ़ सो जाती हूँ
शब्दों के संसार में
बिन पहचाने
शब्दों को खोजने जाती हूँ
शब्दों की गहन भाषा को
मैं बिन जाने भी
जान जाती हूँ
कभी शब्द मेरे हो जाते हैं
कभी मैं शब्दों की हो जाती हूँ
कभी शब्द मुझको छूते हैं
कभी मैं शब्दों में खो जाती हूँ
इस शब्दों के अनोखे खेल में
मैं शब्दों से लाड लड़ती हूँ
शब्दों के मीठे आमंत्रण पर मैं
बिन डोर खिंची चली आती हूँ
14 टिप्पणियां:
शब्दों के मधुर निमन्त्रण पर,
बिन डोर खिंचे सब आते हैं।
ये शब्द कभी तड़पाते हैं,
और कभी बहुत हर्षाते हैं।
शब्दों की महिमा अनन्त है,
शब्दों से मन में बसन्त है।
शब्द पिरो जाते हैं माला,
शब्दों का नही कोई अन्त है।
कभी शब्द मेरे हो जाते हैं,
कभी मैं शब्दों की हो जाती हूं !!
बहुत ही सुन्दर रचना ।
और मैं शब्दों की चादर
ओढ़ सो जाती हूँ
शब्दों के संसार में
शब्दो की चादर बहुत खूबसूरती से ओढा है.
बहुत खूबसूरत
एक सुन्दर गीत है आपकी यह रचना...........सुन्दर
जो शब्दों की डोर से खीचा चला जाए, जो शब्दो की चादर ओढ़ सो जाए,और जो शब्दों से लाड लडाये वही तो सच में लेखक होता है। नए नए विषय पर लिखने में आपका जवाब नही। खूब लिखिए और जमकर लीखिए।
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर शब्दों का आमंत्रण बढ़िया भाव है
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
वीनस केसरी
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
वीनस केसरी
इस शब्दों के अनोखे खेल में
मैं शब्दों से लाड लड़ती हूँ
शब्दों के मीठे आमंत्रण पर मैं
बिन डोर खिंची चली आती हूँ
वंदना जी ,
बहुत कुछ कहने में समर्थ
कविता सराहनीय .बधाई!!!
अति सुन्दर प्रस्तुति
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बहुत सुन्दर रचना........
वंदना जी.....
अद्भुत रचना....
excellently expressed....
plese visit my blog too if u have time...
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वंदना जी ,
बहुत सुन्दर रचना..बधाई...
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