आज कुछ
ख्वाबों को
दिल की
धरती पर
बोया है
आशाओं के
बीजों को
दिल की मिटटी में
कुछ ऐसे
बो दिया
कि जैसे कोई
आशिक
अपनी महबूबा
की हसरत में
ख़ुद को
मिटा देता हो
अब इसमें
हर सपने की
एक-एक
कणिका को
खाद बनाया है
जैसे कोई
स्वर्णकार
किरच-किरच
सोने की
संभाले जाता हो
और उसमें
दिल के हर
अरमान की
बूँद - बूँद का
पानी दिया है
जैसे कोई
मूर्तिकार
अपनी शिल्प में
आखिरी हीरा
जड़ रहा हो
अब तो बस
इंतज़ार है
उस पल का
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
दिल की धरती भी
महक-महक जायेगी
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेगी
21 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत लिखा है
बहुत सुन्दर रचना है।
बधाई हो!
आखिर सागर का मन्थन कर मोती
खोज ही लिए आपने।
सुन्दर रचना है बधाई।
बहुत सुन्दर lagi आपकी यह रचना बधाई
har khwaab ko usaki tabir mil jayegi
.....mai to yahi kahunga ki .....aamin.........dil se nikali baat
बहुत ही अच्छी कविता है!
nice one....!!!!
सच ख्वाबों को बुनते रहना चाहिए। ख्वाब बिन सब सुन रे भईया। सुन्दर।
khoobsurat kahayal..
acchi rachna..
aasha ki fasal lahlaha gayi hai vandana ji..
badhai
अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और सटीक शब्दों के चयन से आपकी अभिव्यक्ति बड़ी प्रखर हो गई है।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-इन देशभक्त महिलाओं के जज्बे को सलाम-समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
ऐ खुदा ! हर ख्वाब की किस्मत में ताबीर लिख
दे.....डॉ. अमरजीत कौंके
अब तो बस
इंतज़ार है
उस पल का
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
दिल की धरती भी
महक-महक जायेगी
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेगी
atisundar!!!
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
दिल की धरती भी
महक-महक जायेगी
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेग
वाह सुन्दर एहसास हो तो ऐसा हो बहुत बहुत बधाई
Inhe sambhal kar rakhiyega, bahut keemtee hain ye.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हर ख्वाब को
उसकी ताबीर मिल जायेगी
===
आशावादी --
सार्थक बिम्ब --
खूबसूरत एहसास --
सुन्दर कविता --
ख्वाबों को/आशाओं के/बीजों को/बो दिया/ख़ुद को/मिटा/हर सपने की/अरमान की/हर ख्वाब को/उसकी ताबीर मिल जायेगी.
सुन्दर, भावपूर्ण वाक्य विन्यास.
bahut sunder
khwaab ki tabir hogi zarur hogi
wonderfull
magic of words and meaningfull
वन्दना जी ,
बहुत सुन्दर भावो को स्वयम मे समेटी रचना
आज कुछ
ख्वाबों को
दिल की
धरती पर
बोया है
जैसे कोई
स्वर्णकार
किरच-किरच
सोने की
संभाले जाता हो
और उसमें
दिल के हर
अरमान की
अब तो बस
इंतज़ार है
उस पल का
जब आशाओं की
फसल लहलहाएगी
इस आशावादी रचना के लिये ाआपको बधाई, मै मा सरस्वती से प्रार्थना करून्गा कि वे ाआपकी कलम को ीइसी तरह धार देते रहे.
सादर
राकेश
vandana , kaash khwaabo ki wo jubaan ham samajh paate ... aapne to jabardasht upmaao ke dwara is kavita ko ji liya hai ....
namaskar
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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