तेरा चहकना
महकना ,मचलना
खिलखिलाना
कुछ यूँ लुभाता है
जैसे कोई नदिया तूफानी
सागर के सीने पर
अठखेलियाँ कर रही हो
तेरे पहलू में
सिर रखकर
सुकून पाना
अब किस्मत नहीं
तुझे याद रखना
या भूल जाना
अब बस में नहीं
दीदार तेरा हो
अक्स मेरा हो
रूह तेरी हो
जिस्म मेरा हो
नींद तेरी हो
ख्वाब मेरा हो
मौत मेरी हो जिसमें
वो गोद तेरी हो
नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
ख्वाहिश बना मुझे
नज़रों में बसा मुझे
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे
ख्वाबों के सूखे दरख्तों पर
आशियाँ बनाया नहीं जाता
हर चाहने वाली सूरत को
दिल का दरवाज़ा दिखाया नहीं जाता
तेरे ग़मों की दुनिया में
अश्क मेरे बहते हैं
दर्द के ये कुछ फूल हैं
जो काँटों पर ही सोते हैं
25 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना ...आभार
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
तेरे पहलू में
सिर रखकर
सुकून पाना
अब किस्मत नहीं
तुझे याद रखना
या भूल जाना
अब बस में नहीं...
यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.... बिलकुल ऐसा लगा कि मन बात कही गई हो.....
bhut khub vandana ji ye laayne bhut hi sundar
ख्वाबों के सूखे दरख्तों पर
आशियाँ बनाया नहीं जाता
हर चाहने वाली सूरत को
दिल का दरवाज़ा दिखाया नहीं जाता
yathart ke saath samvednao ko sajoya hai aap ne
saadar
praveen pathik
9971969084
सभी "क्षणिकाएं" बहुत अच्छी हैं ... खास कर ये पंक्तियाँ मुझे बहुत अच्छी लगी ....
नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
ख्वाहिश बना मुझे
नज़रों में बसा मुझे
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे
नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
ख्वाहिश बना मुझे
नज़रों में बसा मुझे
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे
kya baat hai
नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
ख्वाहिश बना मुझे
नज़रों में बसा मुझे
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे
.....bahut khoob
Haardik shubhkamnayen
तेरा चहकना
महकना ,मचलना
खिलखिलाना
कुछ यूँ लुभाता है
जैसे कोई नदिया तूफानी
सागर के सीने पर
अठखेलियाँ कर रही हो
रचना बहुत ही शानदार है!
गहन अर्थ लिए हुए शब्द
सीधे हृदय में उतर जाते हैं!
हर क्षणिका एक से एक बढ़ कर .....
नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
ख्वाहिश बना मुझे
नज़रों में बसा मुझे
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे
ये बहुत अच्छी लगी...
नमस्कार..
क्षणिकाओं मैं उलझा ऐसा...
भूल गया ये क्षणिकाएं हैं...
भावों की प्रस्तुति ऐसी है..
लगा की सब ही कवितायेँ हैं...
वाह...
दीपक शुक्ल...
नमस्कार..
क्षणिकाओं मैं उलझा ऐसा...
भूल गया ये क्षणिकाएं हैं...
भावों की प्रस्तुति ऐसी है..
लगा की सब ही कवितायेँ हैं...
वाह...
दीपक शुक्ल...
MAFI CHAHTA HUN...MAIN DEKH NAHIN PAYA KI TIPPANI KA MODRATION ON HAI.. TIPPANI 2 BAAR BHEJ DI...
SORRY...
Deepak Shukla..
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ
बस एक बार पुकार मुझे
एहसासों की सुन्दर रचनाएँ
इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई...
नीरज
नज़्म बना मुझे
कागज़ पर उतार मुझे
वंदना जी बहुत बढ़िया और गहरे भाव से भरी है आपकी यह प्रस्तुत क्षणिकाएँ..सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
आजकल तो लोग जलजला का नाम सुनकर ही घबरा जाते हैं लेकिन जलजला आपको इस बेहतर रचना के लिए सलाम करता है। खुदा करें आप और अधिक अच्छा लिखें। यह तभी संभव है जब आप टिप्पणी करने वालों के ब्लाग के अलावा अन्य ब्लागों पर भी जाएंगी। आपके लेखन की भावना पूरी तरह से पवित्र है... लेखन में पवित्रता के पाखंड से बचना भी एक अनिवार्य शर्त हैं। आपको शुभकामनाएं।
सभी बहुत सुन्दर लिखी गयी हैं पसंद आई शुक्रिया
नज़्म बना
कागज़ पर उतार मुझे ...
बहुत सुन्दर ...
हर चाहने वाली सूरत को दिल का दरवाजा दिखाया नहीं जाता ...
बहुत ही बढ़िया ...!!
क्या कहने बहुत खूब -
रूह तेरी हो ----जिस्म मेरा हो
वाह .....बहुत खूब ....!!
क्षणिकाएँ सुन्दर, अगर प्रत्येक के बाद कोई ऐसा चिह्न हो जो बताए कि यहाँ के बाद अगली रचना है, तो और अच्छा लगेगा।
समझ में तो ख़ैर अभी भी आ रहा है।
जो अच्छा लिखते ही रहते हैं उन्हें हर बार अच्छा सुन्दर कहते चले जाने में संकोच होता है और बहुत बार इसीलिये आपकी रचना की सराहना कमेन्ट के रूप में पोस्ट ना होती, बस होंठों पर आकर रह जाती है.
आज आपकी पंक्ति
हर चाहने वाली सूरत को
दिल का दरवाज़ा दिखाया नहीं जाता
की सराहना करने की बड़ी इच्छा हुई, सो की बोर्ड का इस्तेमाल कर रहा हूँ.
के एस एस कन्हैया
सुंदर अभिव्यक्ति !
वह .. जलवाब .. हर क्षणिका जबरदस्त है ...
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