मैं पी नहीं पाती
सच कहती हूँ
अब जी नहीं पाती
अमृत पीने की आदत जो नहीं
उम्र गुजर गयी
गरल पीते- पीते
बताओ जिसने सिर्फ
विष ही पीया हो
जिसके रोम रोम में
सिर्फ विष का
ज्वर ही चढ़ा हो
जिसने ना कभी
अमृत का स्वाद चखा हो
जिसे छूने वाला भी
खुद विषबेल बन गया हो
बताओ तो ज़रा
उसे कैसे अमृत भायेगा
क्या वो भी विष ना बन जायेगा
एक ऐसा अमृतमय विष
जिसे जितना पियो
उतना ही विषमय होता जायेगा
बताओ कोई अब कैसे मरे?
अमर होने के लिए
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान ..............
जीने के लिए साँसों का होना ही काफी होता है
सच कहती हूँ
अब जी नहीं पाती
अमृत पीने की आदत जो नहीं
उम्र गुजर गयी
गरल पीते- पीते
बताओ जिसने सिर्फ
विष ही पीया हो
जिसके रोम रोम में
सिर्फ विष का
ज्वर ही चढ़ा हो
जिसने ना कभी
अमृत का स्वाद चखा हो
जिसे छूने वाला भी
खुद विषबेल बन गया हो
बताओ तो ज़रा
उसे कैसे अमृत भायेगा
क्या वो भी विष ना बन जायेगा
एक ऐसा अमृतमय विष
जिसे जितना पियो
उतना ही विषमय होता जायेगा
बताओ कोई अब कैसे मरे?
अमर होने के लिए
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान ..............
जीने के लिए साँसों का होना ही काफी होता है
34 टिप्पणियां:
मीरा जैसा प्रेम हो तो विष भी अमृत हो जाता है।
फुर्सत के कुछ लम्हे--
रविवार चर्चा-मंच पर |
अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुति के साथ,
आइये करिए यह सफ़र ||
चर्चा मंच - 662
http://charchamanch.blogspot.com/
अमर होने के लिए
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
बहुत खूब .. सुन्दर रचना
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान ..............
वाह! अब आप ऐसा विषपान करा ही रहीं हैं तो कर लेते हैं जी.आपकी अभिव्यक्ति में भी कृष्ण ही दिखलाई दे रहा है,वंदना जी.
आपकी रचना एक नई दृष्टि दे रही है पुरातन प्रतीकों को देखने के लिए. सुन्दर कविता
Bahut hi sundar or satik rachna.
बहुत ही सुंदर रचना।
बहुत बढ़िया..सुन्दर अभिव्यक्ति...
गहरी अभिव्यक्ति....
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान
वाह...बहुत बढ़िया लिखा है...मीरा बन के तो देखे कोई पहले...फिर विष और अमृत की बात करे...
उम्र गुजर गयी
गरल पीते- पीते
बताओ जिसने सिर्फ
विष ही पीया हो
जिसके रोम रोम में
सिर्फ विष का
ज्वर ही चढ़ा हो
जिसने ना कभी
अमृत का स्वाद चखा हो
जिसे छूने वाला भी
खुद विषबेल बन गया हो
बताओ तो ज़रा
उसे कैसे अमृत भायेगा... kya kahun , bas soch rahi hun
सुन्दर लिखा है.
"विष भी अमृत बन जाता है। जब कोई मीरा बन जाता है।" वसुदेवं सुतं देवम कंस चारूण मर्दनम। देवकी परमानंदम कृष्णम वंदे जगत्गुरुं।" मीरा जैसी भक्ति की शक्ति……!!!! सुंदर प्रस्तुति॥
विष भी अमृत बन जाता है।बहुत खुब।
सही और सटीक बात।धन्यवाद।
प्रेम में विष को अमृत करना प्रेम को नए आयाम पर ले जाता है.
अद्भुत प्रस्तुति.
सुन्दर!
सुन्दर भाव और समर्पण की रचना .
सुन्दर भाव और समर्पण की रचना .
प्रेम में सब कुछ अमृत हो जाता है ....
amratmay kavitaa,man khush ho gayaa
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
बताओ कभी किया है तुमने ऐसा विषमयी अमृतपान
वाह! बहुत ही गहन-गूढ़ अभिव्यकि जहा अभिधा से काम नहीं चलने वाला. लक्षणा और व्यंजना का उपयग किये बिना इस दार्शनिक रचना को समझ पाना कठिन है. लेकिन सारा सुनारी इसकी सहज अभिव्यकि को है. इतनी गूढ़ बात और इतनी सहजता? यह गुर. यह कला तो अनुकरणीय है. बधाई..ढेर सारी बढ़िया इस रचना हेतु. और उन रचनाओं हेतु भी जिसे आपने प्रतियोगिता में सम्मिलित किया है. अग्रिम शुभ कामनाये भावी विजय श्री के लिए.
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
अनूठी और सुंदर रचना ,बधाई ।
सिष का प्याला राणा ने भेजा
पीवत मीरा हांसी रे...
सुन्दर रचना...
सादर आभार....
बिल्कुल सही लिखा है आपने! सटीक पंक्तियाँ! बेहतरीन रचना
saarthak rachna....waakai mein saansein hee zaruri hain...jeene ke liye
बहुत कुछ सोचने पर विवश करती रचना.. क्यों किसी को विष पीने पर बाध्य होना पड़ता है.....
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
जब कोई मीरा बन जाता है
जिसे कृष्ण विष में भी दिख जाता है
....बहुत उत्कृष्ट भावमयी अभिव्यक्ति...
मीरा के प्रेम ने विष को भी अमृत बना दिया।
गहन अर्थयुक्त बेहद प्रभावशाली कविता।
अमर होने के लिए
जरूरी नहीं अमृत का होना
विष भी अमृत बन जाता है
क्या बात है वन्दना जी. बहुत सुन्दर रचना.
अमर होने के लिये जरुरी नहीं अमृत का होना....वाह !!! बहुत सुंदर भाव, बहुत सुंदर रचना.
अमृत को देखा नहीं , बस माना है
लेकिन विष को देखा और पहचाना है.
मीरा सी भक्ति हो तो तो विष भी अमृत हो जाए!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत बढ़िया लगा! बेहद ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
Very Nice...I liked it very much
God Bless You :) :)
vandana ji spast likhkar logo tak sachchayee phuchane ka sukriya
madhu tripathi MM
http://kavyachitra.blogspot.com
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