सबने कहा आज चाँद
आस्मां मे देखना
तभी व्रत का पारण करना
मगर किसी ने ये तो
बताया ही नही
वो आस्माँ है किधर
जिसमे चांद का दीदार हो
मेरा चांद तो हर पल
मेरे आस्माँ पर चमकता है
अब बताये कोई
कौन से चाँद का दीदार करूँ
किसे देख व्रत का पारण करूँ
उसे जो घटता बढता रहता है
या उसे जो पूर्णता से मुझमे रहता है
कौन सा अर्घ्य दूं
अक्षत मिश्रित जल का
या प्रेम सिंचित नेह का
यहाँ तो रोज ही
अर्घ्य देती हूँ
व्रत रखती हूँ
और चाँद का दीदार करती हूँ
फिर कैसे उसे एक दिन के
बंधनों में जकड दूं
मैने तो सुना है मोहब्बत का पारण कभी नही होता
कभी मिटटी का तेल लगाया
तो कभी चूना लगाया
तो कभी विक्स लगायी
तो कभी लोंग की भाप देती रही
कृत्रिम तरीके आजमाती रही
और खुद को बहलाती रही
और अपने पर इतराती रही
मगर इतना ना समझ पाई
जबकि हर बार हाथों में लगी
फीकी मेहँदी यही समझाती रही
कब तक खुद को बहलाओगी
कब इतना समझ पाओगी
ज़बरदस्ती के रंग कब ठहरे हैं
पोलिश कभी तो उतरती ही है
मगर यहाँ तो पोलिश भी नहीं
25 टिप्पणियां:
दोनो खयाल उम्दा भाव लिये हुए.
कृत्रिमता से परे जो रंग चढेगा वह नहीं उतरेगा
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
शुभ-कामनाएं ||
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_15.html
behtarin karvachuth se judi rachna ..bilkul naye sandarbh me..badhayee
behtarin karvachuth se judi rachna ..bilkul naye sandarbh me..badhayee
बहुत सुंदर
सामयिक
हमारे घर में तो यह चांद देखने की रस्म ही नहीं निभाई जाती है। इसलिए आपकी रचना के दोनों ख़्याल अच्छे लगे।
दोनों करवा चौथ की कविताएँ अच्छी लगीं । दोनों में कितना विरोधाभास है । एक प्रेमरस में डूबी तो दूसरी वंचित ।
bahut sunder.dono khayaal umda hain.
दोनों ख्याल बढ़िया है /// पहला वाला ज्यादा पसंद आया
खूबसूरत ख्याल है।
vandna jee ,badhaayee . vrindaavan men bhee vishwaas ke vrat ke naam
kuchh hai vo chaand ==
दोनों ही रचनायें बहुत ही भावुक कर देनेवाली.एक नई सोच-एक नई कल्पना.
रंग तो स्थायी हो अच्छे लगते हैं।
रंग तो चढेगा ही. खूबसूरत बहुत सुंदर प्रस्तुति ||
बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण रचना,बधाई!
दोनों ख्याल सुंदरता से अभिव्यक्त हुए है!
dono hi behtareen
आप बताइए कि अगर मॉडरेशन का विकल्प हो,तो आप दोनों ख़्यालों में से किसे मॉडरेट करना चाहेंगी?
dono khyal apni apni jagah behtar hai
bat to yeh hai ki apne sabd-bilom ka achchha dhyan diya
madhu tripathiMM
tripathi873@gmail.com
http://kavyachitra.blogspot.com
bahut hi sundar ....
दोनों कविताये एक से बढ़कर एक हैं... प्रीत का चाँद तो सदा भीतर जगमगाता ही रहता है कोई देखने वाला चाहिए और प्रीत की मेहँदी कभी फीकी पड़ती ही नहीं कोई लगाने वाला चाहिए... बाहर का चाँद और बाहर की मेहँदी तो उस भीतर वाले की याद दिलाने के लिये हैं...
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ..शुभकामनायें !!
लाजवाब कर दिया आपने...दोनों पक्ष बहुत सशक्त ढंग से प्रस्तुत किये हैं आपने...बधाई स्वीकारें
नीरज
वाह ...बहुत ही बढि़या।
दोनों रचनाएं अलग अलग मूड को दर्शाती हैं ... और अपने आप में सच भी हैं ...
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