मत खुलना कभी
किताब की तरह
तुम्हें पन्ने दर पन्ने
सुलझाना
एक पहेली की तरह
अच्छा लगता है
आखिर कुछ तो हो
जिसकी तलाश में
जूनून कायम रहे
यूँ पढ़ तो लिया है
हर हर्फ़ तुम्हारी
खामोश निगाहों में
मगर अभी उसकी
व्याख्या बाकी है
आखिर समीक्षक
भी तो होना चाहिए
हर लफ्ज़ में घुटे
चीत्कार करते
अहसासों को
तर्क की कसौटी
पर कसकर फिर
उसके सन्दर्भ
पर शोध भी तो
करना होगा
आखिर यूँ ही थोड़े
किसी लफ्ज़
किसी भाव
या किसी चाहत को तुम्हारी
सरसरी तौर पर पढ़ा है
शोध की दिशा में
गहन अध्ययन आवश्यक होता है
यूँ ही डिग्रियां नहीं मिलतीं मोहब्बत की
41 टिप्पणियां:
यूँ पढ़ तो लिया है हर हर्फ़ तुम्हारी खामोश निगाहों में मगर अभी उसकी व्याख्या बाकी है... ध्यानावस्थित मन ही आँखों के हर्फ़ पढ़ पाता है
गहन शोध ज़रुरी है ... वैसे मुहब्बत की डिग्री मिलती है क्या ?
Agar mohabbat me bhi digri hoti to baat hi kya thi..........
Nice poem,jai hind jai bharat
इस शोध के लिए शुभकामनाएं।
यूं ही नहीं मिलती मुहब्बत की डिग्रियां....
बेहतरीन प्रस्तुति।
वाह ...बहुत खूब कहा ...।
व्याख्या,तर्क,समीक्षा,घुटन और चीत्कार जहां हो,वहां मुहब्बत नहीं,कुछ और रहा होगा!
एक आग का दरिया है और डूब कर जाना है ..सच है आसान नहीं मोहब्बत.
बहुत बढ़िया...
मुहब्बत में डिग्री मिलनी बहुत दूर की बात है..हम तो इसमें पास हो जाए बहुत है....इस शोध के लिए शुभकामनाएं।
संवेदना से भरी कविता... बहुत सुद्नर...
वंदना जी
कोई डिग्री तो नक़ल करके ली जा सकती है किन्तु मोहब्बत की डिग्री के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है बेहतरीन प्रस्तुति
मधु त्रिपाठी MM
tripathi873@gmail.com
http://www.kavyachitra.blogspot.com
वंदनाजी
हमारे ब्लॉग पर आप पधारे मुझे अच्छा लगेगा
htpp://www.kavyachitra.blosspot.com
क्या बात है आपने तो नि:शब्द कर दिया यहां ..।
Are wah aise to kabhi socha nahi.. sach is course ko padhne ka motivationk hatam hota jata tha.. aapne wapas jila dia.. shukriya :)
मुहब्बत की डिग्री हर किसी क हांसिल कहाँ होती है ... लाजवाब ...
वंदना जी नमन है आपकी लेखनी को..अद्भुत रचना.
नीरज
बहुत बढ़िया!
कौन से विश्वविद्यालय में पी.एच.डी. के लिए शोध जमा करना होगा?
shaandaar rachna Vandana JI.
शोध जारी रहे ... डिग्री जल्द मिले
प्रेम परीक्षक, ऊपर वाला।
शोध से कई सत्य नए सिरे से स्थापित हो जाते हैं....!
सुन्दर रचना!
शोध से कई सत्य नए सिरे से स्थापित हो जाते हैं....!
सुन्दर रचना!
बेहतरीन रचना.
अजीब विश्व और अजीब विद्यालय है-
किताबों का गहन अध्ययन कर शोध करे,डॉक्टर की डिग्री मिलती है.
दिल की किताब का गहन अध्ययन कर शोध करे,मरीज की डिग्री मिलती है.
और इस मरीज का इलाज वो करता है जिसने न कभी अध्ययन किया है न किसी तरह का शोध.
वाह! बहुत सुन्दर एवं शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
aajkal to har koi mohabbat ki degree liye ghoomta hai....bas farq itna hota hai ki wo degrees farzee hoti hain!!!!!
are wah aapne to soch ko nai disha de di mam....
मुहब्बत में डिग्री.........वंदना जी आप कमाल हैं........बहुत पसंद आई पोस्ट|
मुहब्बत की डिग्रीयों पर कविता,वाह क्या बात है.
नयी approach.
वाह वाह! बहुत ही सुन्दर रचना...
सादर बधाई...
thoughtful
nice poem
यूं हीं नई मिलती मोहब्बत की डिग्रीयाँ...बहुत खूब वंदना जी .....
आखिर कुछ तो हो जिसकी तलाश में जूनून कायम रहे ...
ववाह क्या बात है !
प्यार किया नहीं जाता होजाता है ....
वाह ..
क्या बात है !!
मोहब्बत को कौन परिभाषित कर पाया है वंदना जी .....
पर आपने शोध आरम्भ किया है तो शुभकामनाएं ....
मोहब्बत पर पी एच डी ....बहुत खूब ....:))
sharda ji dwara mail par bheja gaya comment
Vandna ji
bahut koshish ki aapki kavita par ye tippni dene kee , magar error hi
aati rahi ...
"यूँ ही डिग्रियां नहीं मिलतीं मोहब्बत की"
बढ़िया , कवित्री मन का शोध ...बधाई ....
Sharda Arora
bahut sundar bhavapoorn abhivyakti..
समय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
मंगल मय हो सबको दीपों का त्यौहार ,दीपों का आकाश .आभार इस हलचल के लिए . .शानदार प्रस्तुति .यूं ही डिग्रियां नहीं मिलती मोहब्बत की .
SHODH KAARY JAAREE HAI....
digree milte mein abhi samay baki hai....
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